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________________ ९. संकल्प की स्वतन्त्रता और नैतिकता आप स्वतंत्र हैं या परतन्त्र ? यदि स्वतन्त्र हैं तो आपके लिए नैतिकता का कोई अर्थ है | यदि आप परतंत्र हैं तो आपके लिए उसका कोई अर्थ नहीं है। आप अपने कृत के लिए उत्तरदायी हैं या अनुत्तरदायी ? यदि उत्तरदायी हैं तो आपके लिए नैतिकता सार्थक है । यदि उत्तरदायी नहीं हैं तो आपके लिए वह निरर्थक है । संकल्प की स्वतन्त्रता और कृत के प्रति उत्तरदायित्व- इन दो से बंधी हुई है नैतिकता । यदि मनुष्य किसी अदृश्य शक्ति के द्वारा संचालित हो अथवा किसी राज्य-शक्ति से परिचालित हो तो उसके कर्त्तव्य को नैतिकता और अनैतिकता की भाषा में गांठना सरल नहीं है । नैतिकता : कारण और निमित्त नैतिकता की समीक्षा के दो कोण हैं— कारण और निमित्त । नैतिकता का कारण है व्यक्ति का अपना संकल्प | उसके निमित्त अनेक हो सकते हैं। वर्तमान में अनैतिकता का विकास हुआ है । उसका निमित्त है परिस्थिति । परिस्थिति को बदलने की भरपूर चेष्टाएं हो रही हैं । निमित्त के बदल जाने पर उत्तेजना नहीं होगी, उद्दीपन नहीं होगा किन्तु कारण यथावत् बना रहेगा । अनैतिकता का कारण बना हुआ है । उसे छोड़ने का संकल्प जागे बिना कोरे निमित्त का परिवर्तन समस्या को कैसे सुलझाएगा ? हो यही रहा है । सारे राष्ट्र परिस्थिति को बदलने की चिंता में व्यस्त हैं । साम्यवादी राष्ट्रों ने परिस्थिति को बदलने के भरसक प्रयत्न किए, क्या वहां अनैतिकता मिट गई ? रूस और चीन की घटनाएं बता रही हैं- जनता का मानस नहीं बदला है । इससे सही स्थिति का अंकन करने में बड़ी सुविधा होती है । कारण को बदले बिना कोरा निमित्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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