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२८ आमंत्रण आरोग्य को से मुक्त नहीं रह सकता ।
धर्म चेतना के साध जुड़े
संप्रदाय के प्रति बदलती अवधारणाओं में यदि वर्गीकरण नहीं किया गय तो भयंकर भूल की संभावना को नहीं टाला जा सकता । धर्म-संप्रदायों का रक्त रंजित इतिहास राजाओं की तलवार से लिया गया है | उसका हेतु रहा-अपने संप्रदाय को फैलाने का व्यामोह । जब-जब और जहां-जहां धर्म को तलवार के साथ जोड़ा गया तब-तब अनुयायियों की संख्या बढ़ी किन्तु धर्म नहीं बढ़ा इस वैज्ञानिक युग में धर्म, संप्रदाय और उसके साथ जुड़ी विस्तारवादी मनोवृत्ति को अलग-अलग बटखरों से तौलना होगा । उनके साथ तभी न्याय किया ज सकेगा । एक ही बटखरे से सबको तौलने का अर्थ न सही मूल्यांकन होगा और न समुचित न्याय । आज के विश्व-चिन्तन का बहाव संप्रदाय की ओर नह है | वह यथार्थ की ओर प्रवाहित है | धर्म एक यथार्थ है । उस तक पहुंचने की गति में तरतमता हो सकती है। उसके स्वरूप में तारतम्य नहीं होता । हम पहुंच के तारतम्य को वास्तविकता मानकर उलझ जाते हैं ।
इस उलझन को मिटाने के लिए धर्म-संप्रदायों के अभेद और भेद का अध्ययन आवश्यक है | आज का विचारक इस आवश्यकता की अनुभूति कर रहा है और इस कार्य में जुटा हुआ है । वह दिन विश्व के इतिहास में महत्त्वपूर्ण होगा, जिस दिन धर्म संख्या के बन्धन से मुक्त होकर चेतना के साध जुड़ेगा । इस क्षण की प्रतीक्षा वैज्ञानिक युग में ही की जा सकती है ।
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