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४. अधूरी सचाई समस्याओं का जाल
तोड़ नहीं सकती
निमित्त : उपादान
___ मनुष्य के भीतर एक अंगारा है राख से ढका हुआ । ईंधन मिला कि आग भभक जाती है। कुछ विचारक मानते हैं- मनुष्य प्रकृति से अच्छा होता है, परिस्थिति उसे बुरा बनाती है । कुछ मानते हैं - बच्चा सलेट जैसा होता है, परिस्थिति उसे अच्छा या बुरा बनाती है । इस परिस्थितिवाद ने मूल सचाई पर पर्दा डाल दिया है । उपादान हमारी आंखों से ओझल हो गया है । तर्क शास्त्र में कार्य-कारण का सिद्धान्त चलता है । अनुकूल परिस्थिति मिली, मिट्टी घड़ा बन गई । परिस्थिति मिट्टी को घड़े का रूप देने वाली हो सकती है पर वह मिट्टी का निर्माण नहीं कर सकती। मिट्टी उपादान है । कारणवाद की भाषा में मिट्टी को घड़े का आकार देने वाले तत्त्व निमित्त और निवर्तक हैं । निमित्त को सब कुछ मानकर बैठ जाने वाले पूरी सचाई को छु नहीं सकते । अधूरी सचाई समस्याओं का जाल तोड़ नहीं सकती ।।
मनुष्य का अस्तित्व वर्तमान की उपज नहीं है । मनुष्य वर्तमान की उपज है । वह पहले मनुष्य ही था—ऐसा नहीं कहा जा सकता पर उसका अस्तित्व पहले था और अभी भी है इसीलिए इस स्थूल शरीर में सांस लेने वाले मनुष्य की व्याख्या अतीत के संदर्भ को छोड़कर नहीं की जा सकती । जीनेटिक इंजीनियरिंग के अनुसार मनुष्य के भाग्य की लिपि अथवा कर्म की लिपि जीन में अंकित है । अध्यात्म विद्या के अनुसार वह मनुष्य के सूक्ष्म शरीर या कर्म शरीर में अंकित है । इस लिपि को पढ़कर ही मनुष्य के अच्छा या बुरा होने की मात्रा
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