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________________ १२ आमंत्रण आरोग्य को नहीं होते । मृत्युदण्ड के समर्थन में आने वाले तर्कों के उपरांत भी एक प्रश्न शेष रहता है । क्या मृत्युदण्ड हत्या की घटनाओं को रोक पाएगा? इतिहास साक्षी है- हत्या और मृत्युदंड दोनों निरन्तर चलते रहे हैं । हत्या आवेश में की जाती है । मृत्युदण्ड चिन्तनपूर्वक दिया जाता है । इसलिए हत्या और मृत्युदण्ड में कोई संगति नहीं है । आवेश की बहुलता रुके तो हत्या की घटना रुक सकती है अन्यथा उसे रोकना संभव नहीं है । मृत्युदण्ड चिन्तनपूर्वक होने वाली प्रक्रिया है इसलिए उसे बदला जा सकता । मृत्युदण्ड का औचित्य भय अपराध की रोकथाम में एक कारण बन सकता है बनता है किन्तु भय के आधार पर मृत्युदण्ड का औचित्य प्रमाणित नहीं किया जा सकता । समाज में केवल हत्या ही अपराध नहीं है और भी बहुत सारे अपराध हैं । अन्य अपराधों की सजा मृत्युदण्ड के बिना हो सकती है तो हत्या की सजा उसके बिना क्यों नहीं हो सकती ? समाज को भय से हांकने की मनोवृत्ति उसके विकास की सुचक नहीं है । भय और प्रलोभन प्रथम दृष्टि में कार्य की साधना में सहायक प्रतीत होते हैं | अंततः कार्यसिद्धि में वे सबसे बड़े विघ्न बनते हैं। एक आदमी ने हत्या की और उसे फांसी की सजा दी गई । एक की मौत आवेश या आतंक के साए में हुई और दूसरे की मौत कानून के साए में । एक की मौत अन्याय के पल्ले में हुई और दूसरे की मौत न्याय के पल्ले में । तराजू के दोनों पल्ले बराबर रहे | आखिर आवेश और चिन्तन- दोनों ने मारने का सहारा लिया। आतंकवाद भी भय की नीति के सहारे चल रहा है । डरा-धमकाकर लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है, यह धारणा ही आतंकवाद को जिला रही है । मृत्युदण्ड का भय दिखलाकर अपराध को रोका जा सकता है, यह धारणा भी भय की नीति के आधार पर चल रही है । इन दोनों में संवेदनशीलता का सूत्र पकड़ में नहीं आता । भय अपराध को भूमिगत कर सकता है, प्रकाश से अंधकार में ले जा सकता है, खुलेपन से छिपाव में ले जा सकता है, उसे मिटा नहीं सकता। उसे मिटाने का एक शक्तिशाली उपाय हैं- संवेदनशीलता । उसकी पतंग आकाश में उड़ रही है, डोर हाथ से गायब है | क्या उसे हाथ में थामने का प्रयत्न होगा ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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