________________
४२. मानसिक आरोग्य और अध्यात्म
__ तन और मन दोनों स्वस्थ रहें, यह हर व्यक्ति की स्वाभाविक आकांक्षा है । शरीर स्वस्थ हो और मन स्वस्थ न हो तो पागलखाने जाना होगा । मन स्वस्थ हो, शरीर स्वस्थ न हो तो अस्पताल, दवाखाने की शरण लेनी पड़ेगी । दोनों घर से दूर ले जाते हैं । शरीर से भी ज्यादा सताने वाली या कष्टदायी है मन की बीमारियां । मन बहुत सताता है । रोग के दो अधिष्ठान माने गएशरीर और मन । इसी आधार पर बीमारी के दो भेद कर दिए गए-शारीरिक रोग और मानसिक रोग | धर्म या अध्यात्म के साथ मानसिक रोगों का संबंध ज्यादा है । एक सिद्धांत है-वीतराग को मन का रोग नहीं होता । मन का रोग नहीं होता इसलिए शरीर का रोग भी नहीं होता । मन शरीर पर जितना प्रभाव डालता है, जितने रोग पैदा करता है उतना वह मूल रोग नहीं होता । शरीर का रोग सबसे पहले प्रभाव डालता है शरीर पर और फिर प्रभाव डालता है मन पर । मन का रोग पहले प्रभाव डालता है मन पर और फिर प्रभाव डालता है शरीर पर । मुख्य प्रभाव अपना-अपना है । शरीर का रोग शरीर पर और मन का रोग मन पर | लम्बे समय के बाद या उत्तर काल में शरीर और मनदोनों परस्पर प्रभावित होते हैं ।
अध्यात्म की फलश्रुति
धर्म या अध्यात्म का सिद्धान्त है वीतरागता । शायद हमारी दुनिया में वीतराग से ज्यादा कोई सार्थक शब्द नहीं है । जीवन के विकास का इससे बड़ा कोई शब्द नहीं है । वीतराग बन गया, इसका अर्थ है—व्यक्ति शिखर पर पहुंच गया । कोई चोटी बाकी नहीं रही, जहां आरोहण करना हो, चढ़ना हो । वीतरागता सर्वोच्च शिखर या परम बिन्दु है । अध्यात्म की फलश्रुति है वीतरागता । अध्यात्म
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org