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________________ १८२ आमंत्रण आरोग्य को पता चलता है व्यवहार के आधार पर मन की बात बड़ी सूक्ष्म है । व्यक्ति क्या सोचता है, हमें पता नहीं चलता । किंतु व्यवहार और आचरण से पता चल जाता है कि उसके मन में क्या है? स्थूल बात है व्यवहार, आचरण । हम व्यवहार को देखते हैं, आचरण को देखते हैं । कुछ लोग हैं, जिन्हें बोलने का विवेक नहीं होता । कुछ भी बोल जाते हैं । जब उनसे कहा जाता है-आपने ऐसी बात, ऐसा शब्द क्यों कहा ? वे सफाई देते हैं-नहीं । मेरे मन में ऐसी कोई भावना नहीं थी । व्यक्ति यही कहेगा--तुम्हारे मन में क्या था, यह तो भगवान जाने या तुम जानो, पर तुम्हारा शब्द, तुम्हारा आचरण, तुम्हारी भावनाओं की जानकारी दे रहा है । हम सबसे पहले आचरण या व्यवहार के प्रति सजग बनें । जब तक मुंह से गाली न निकले, क्रोध को सफल नहीं माना जाता । कहा गया-क्रोध को सफल मत बनाओ । क्रोध सफल तब होगा, जब मुंह से अपशब्द निकल जाएगा। क्रोध सफल तब होगा जब हाथ उठ जाएगा । तीन अवस्थाएं हो गईं-पहली अवस्था क्रोध की आन्तरिक अवस्था है | दूसरी अवस्था में क्रोध शब्द पर उतर आता है और तीसरी अवस्था में क्रोध शरीर पर उतर जाता है । हम स्थूल दृष्टि वाले लोग हैं । हमारी आंखें स्थूल को पकड़ती हैं । सूक्ष्म को नहीं पकड़ सकतीं, इसलिए जो व्यक्ति साधना करता है उसे सबसे पहले स्थूल के प्रति जागरूक होना होता है | एक व्यक्ति बैठा है । उसे देखकर ही पता लग जाएगा कि यह साधना करने वाला है या प्रमादी है । बैठने का प्रकार, बोलने का प्रकार और सोचने का प्रकार साधक और प्रमादी में स्पष्ट अन्तर कर देगा। साधना के द्वारा सबसे पहला परिवर्तन व्यवहार पर आना चाहिए, आचरण पर आना चाहिए । एक व्यक्ति साधना कर रहा है, धर्म कर रहा है, ध्यान कर रहा है और व्यवहार बिलकुल उलटा जा रहा है । साधना जाती है पूर्व में और व्यवहार जाता है पश्चिम में | अगर ऐसा होता है तो मानना चाहिएभीतर कुछ बदला नहीं है, साधना फलित नहीं हुई है | साधना फलित होगी तो निश्चित ही व्यवहार में परिवर्तन आएगा । साधना का लक्षण है-वह व्यवहार में उतरे और उससे हम मन का पता लगा लें, मन का अंकनं कर लें । जिस व्यक्ति में सात्त्विक मन का विकास हुआ है, उस व्यक्ति में विनम्रता का विकास होगा, अहंकार नहीं होगा । धृति का विकास होगा । उस व्यक्ति में तितिक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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