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व्यक्तित्व के तीन प्रकार १८१
सूक्ष्म है, भीतर है | चेतना और भी सूक्ष्म है, और भी भीतर है। हमें न चेतना का पता चलता है, न मन का पता चलता है । हमें पता चलता है स्थूल का। जो स्थूल है, वही हमें दिखाई देता है, उसी का पता चलता है । सूक्ष्म न हमें दिखाई देता है, न उसका पता चलता है । मन में क्या है, कभी-कभी कोई निकलवा लेता है तो पता चल जाता है । अन्यथा पता चलता है व्यवहार से।
युक्ति का परिणाम
दो व्यक्तियों में झगड़ा हो गया । वे न्यायालय में उपस्थित हुए | न्यायाधीश ने पूछा-'बोलो ! क्या बात है ? क्या समस्या है ?'
एक व्यक्ति ने कहा-'हम दोनों ने मिलकर अमुक वृक्ष के नीचे पांच सौ सोने की मुहरें गाड़ी थीं । इसने सारी मुहरें चुपके से निकाल ली । अब वहां सिर्फ गढ़ा है, मुहरें गायब हैं । आप न्याय करें-मुझे ढाई सौ मुहरें दिलवाएं।'
न्यायाधीश ने दूसरे व्यक्ति से पूछताछ की ।
उसने कहा---'मुझे इस बारे में कुछ पता नहीं । यह जिस वृक्ष के वारे में बता रहा है, वह कहां है, यह भी पता नहीं है । यह बिलकुल झूठे आरोप लगा रहा है।'
न्यायाधीश बड़ा बुद्धिमान था । उसने सोचा-ऐसे तो पता चलेगा नहीं। कोई युक्ति काम में लेनी चाहिए | उसे पहले व्यक्ति की बातों में सचाई की झलक मिली । न्यायाधीश ने पहले व्यक्ति से कहा-'तुम एक काम करो । उस पेड़ को एक बार फिर से देख आओ कि वहां क्या स्थिति है ।'
न्यायाधीश का आदेश मानकर वह चला गया ।
दस मिनट हो गए । न्यायाधीश ने अकुलाहट का भाव चेहरे पर लाकर अपनी घड़ी देखी और दूसरे व्यक्ति से कहा- 'बहुत देर हो गई । अब तक तो वृक्ष के पास पहुंचकर उसे वापस आ जाना चाहिए।'
दूसरा व्यक्ति बोला-'नहीं साहब ! इतनी जल्दी कैसे आ जाएगा ?' 'क्यों ?' 'पेड़ तो यहां से बहुत दूर है ।'
न्यायाधीश बोला—'तुम तो कह रहे थे कि तुम्हें पेड़ का पता ही नहीं, फिर कैसे कह रहे है कि पेड़ बहुत दूर है ?'
वह युक्ति से पकड़ में आ गया ।
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