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१४६ आमंत्रण आरोग्य को
क्रोध, लोभ, भय, ईर्ष्या, मात्सर्य, मोह आदि मानस-दोष सूची के मुख्य सूत्र हैं। ये आयुर्वेद के सूत्र हैं या अध्यात्म के सूत्र हैं ? एक धार्मिक आदमी समझेगायह धर्म की बात कही जा रही है किन्तु आयुर्वेद स्वास्थ्य की दृष्टि से विचार कर रहा है । प्रत्येक व्यक्ति अपना मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षित रखना चाहता है, चाहे वह धर्म को माने या न माने, धर्म में आस्था करे या न करे । जो अपना मानसिक स्वास्थ्य ठीक रखना चाहता है, उसे इन मानस-दोषों से बचना चाहिए । जो इनसे नहीं बचेगा, उसका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा नहीं रह पायेगा।
कभी-कभी दो दिशाएं एक साथ मिल जाती हैं । एक आध्यात्मिक व्यक्ति कहेगा- यदि तुम्हें पाप और अधर्म से बचना है तो क्रोध, लोभ, भय, ईर्ष्या, इन सबसे बचना होगा । यह अध्यात्म की वाणी होगी । स्वास्थ्य-शास्त्र को जानने वाला व्यक्ति कहेगा- यदि तुम शारीरिक और मानसिक दृष्टि से स्वस्थ रहना चाहते हो तो मानस-दोषों- काम क्रोध, लोभ, भय, ईर्ष्या आदि से बचो । यह आयुर्वेद की वाणी है । अन्तर है उद्देश्य में
आयुर्वेद का लक्ष्य है मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा और अध्यात्म का लक्ष्य है पाप से बचाव, अधर्म से बचाव | एक का उद्देश्य है आत्मा की रक्षा और दूसरे का उद्देश्य है स्वास्थ्य की रक्षा । उद्देश्य भिन्न होने पर भी विषय में कोई भेद नहीं है । विषय आ गया, क्रोध से बचना है, काम से बचना है । इन दोनों का एक सूत्र है । काम का मतलब है—इन्द्रिय विषयों के प्रति आसक्ति । काम की आसक्ति होती है, मनोबल टूट जाता है ।।
एक सैनिक लड़ रहा है युद्ध के मोर्चे पर । काम की आसक्ति आ गई। वह सोचेगा-पीछे क्या होगा ! नयी-नयी शादी हुई है, पत्नी का क्या होगा? बस मनोबल टूट गया । एक व्यक्ति सबेरे-सबेरे लम्बी-लम्बी डींगें हांकता है मैं ऐसा कर सकता हूं वैसा कर सकता हूं | मैं कभी चिन्ता भी नहीं करता, चाहे कोई भी कष्ट आ जाए । ऐसा लगता है, इस जैसे मनोबल वाला व्यक्ति कोई दूसरा है ही नहीं । सांझ होते-होते समाचार आया, जवान बेटा दुर्घटना में मारा गया । बस, मनोबल पलायन कर गया, टूट गया । पता नहीं मनोबल था भी या नहीं । एक मानस-दोष पैदा हुआ और वह मनोबल को लील गया ।
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