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मनाबल का हानि क्या १४७
मात्सर्य
कछ मानस-दोष ऐसे होते हैं जो थोड़े मीठे होते हैं, तेज नहीं होते । उनका पूरा पता नहीं चलता । जब वे वेग में आते हैं तो स्थिति बदल जाती है, मन का बल टूट जाता है | मनसिक दोष जब तीव्र बन जाता है तब वह एक साथ मनोबल को चट कर जाता है ।
मात्सर्य एक मानस-दोष है । दूसरे की विशेषता को सहन न करने की वृत्ति है मात्सर्य । मनोबल का एक अर्थ है- सहन करने की शक्ति । ईर्ष्या और मात्सर्य- इन दोनों का काम है सहन-शक्ति को नष्ट कर देना | ईर्ष्या से जलन पैदा हो जाती है । मात्सर्य से भरा व्यक्ति दूसरे की विशेषता को सहन नहीं कर सकता । वह क्रूर बन जाता है । कितनी ही कहानियां हमारे यहां प्रचलित हैं ईर्ष्या और मात्सर्य की । जहां एक व्यक्ति दूसरे की विशेषता को सहन नहीं कर सकता वहां सारी मानसिक स्थिति गड़बड़ा जाती है । यह स्थिति व्यापक बन गई है । आज सहन करने की कोई बात ही नहीं है । आज के युग में सबसे बड़ी बीमारी सहन न करने की बीमारी है । कोई किसी को सहन करना जानता ही नहीं । न बाप बेटे को सहन करना जानता है और न बेटा बाप को सहन करना जानता है । जहां बेटे की प्रशंसा की जाती है वहां बाप का मुंह उतर जाता है । वह सोचता है मेरी नहीं मेरे बेटे की प्रशंसा कर रहा है । उसका मन ईर्ष्या से भर जाता है ।
भय
भय एक प्रबल मानस-दोष है | आदमी में भय इतना भरा पड़ा है कि वह निरन्तर भयभीत रहता है | आज ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिलता, जिसे पूर्ण अभय कहा जा सके । भगवान महावीर ने कहा- सव्वओ अप्पमत्त्स्स णत्थि भयं-- जो अप्रमत्त होता है, वह अभय होता है, उसे कहीं से भी भय नहीं होता । एक भी व्यक्ति मिलना मुश्किल है जो कहीं भी प्रमाद न करे । कहींन-कहीं कोई चूक, कोई विस्मृति हो जाती है । प्रमाद होता है तो भय होता है । जिस व्यक्ति के मन में थोड़ी भी आकांक्षा शेष है वह कभी अभय नहीं हो सकता । वह सोचता है— बात तो सही है किन्तु कह दूंगा तो सामने वाला विरोध करने लग जायेगा । बस, तभी कहीं मन के एक कोने में अवरोध पैदा
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