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मनोबल की हानि क्यों १४५
दोष और दूसरा है आगन्तुक बाधा । आयुर्वेद के अनुसार आगन्तुक है- भूतबाधा
और ग्रहबाधा, किन्तु निजी मानस-दोष, जो आंतरिक मन के दोष हैं, जिनके कारण मन की शक्ति टूट जाती है मनोबल घट जाता है उन कारणों की एक लम्बी सूची है। उस सूची से लगता है-- अध्यात्म और आयुर्वेद-दोनों साथसाथ चले हैं । एक आदमी आध्यत्मिक जीवन जीता है तो जाने-अनजाने में आयुर्वेद के मार्गदर्शन को पा लेता है और स्वास्थ्य का सूत्र पकड़ लेता है । एक व्यक्ति आयुर्वेद के सूत्र से अपना जीवन चलाता है तो शायद अध्यात्म की भूमिका तक पहुंच जाता है । आयुर्वेद के साथ एक दर्शन रहा है अध्यात्म का । यह माना जाता है कि आयुर्वेद के ऋषि सांख्य दर्शन से बहुत प्रभावित रहे हैं, इसलिए उसमें अध्यात्म का प्रभाव भी आया है । भारतीय दर्शनों में चरक का भी एक दर्शन बन गया । जैनागमों में चरक का एक दार्शनिक के रूप में उल्लेख मिलता है । चरक आयुर्वेद के मुख्य आचार्य हैं । कर्म का वर्गीकरण
आयुर्वेद में जो मानस-दोष की सूची है, यदि जैन दर्शन की भाषा में कहें तो वह मोहनीय कर्म की प्रकृतियों की सूची है | मोहनीय कर्म की जो प्रकृतियां हैं, वे मन को विकृत करने वाली होती हैं । आठ कर्म हैं । जयाचार्य ने इनका वर्गीकरण कर इनको तीन भागों में बांट दिया- आवारक, अवरोधक और विकारक | कुछ कर्म हैं-आवरण पैदा करने वाले । वे कोई नुकसान नहीं करते, वे केवल पर्दा डाल देते हैं । ज्ञानावरण और दर्शनावरण—ये दो कर्म आवारक हैं । कुछ कर्म अवरोधक हैं, अवरोध पैदा करने वाले हैं । अन्तराय कर्म प्रतिघात करता है, शक्ति का स्खलन करता है । मोहनीय कर्म विकारक है, विकार पैदा कर देता है । जितनी भी विकृति है, चाहे दृष्टिकोण की विकृति है, आचरण या चारित्र की विकृति है, उसका घटक है मोहनीय कर्म | सीधी भाषा में कहें तो जितना भी बिगाड़ होता है वह मोहनीय कर्म करता है । दर्शनमोह दृष्टिकोण में विकार लाता है, चरित्रमोह चरित्र में विकार पैदा करता है । विकार करने वाला कर्म है मोहनीय कर्म ।
अध्यात्म और आयुर्वेद
आयुर्वेद की भाषा में विकार पैदा करने वाला है— मानस-दोष । काम,
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