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________________ ९६ आमंत्रण आरोग्य को की बात नहीं बनेगी। कामना को छोड़ना कठिन और जटिल काम है । यह इतनी भीतर में धंसी हुई है कि आदमी कामना को छोड़ नहीं पाता । किन्तु यदि प्रयोग की भूमि पर आएं तो बंधन अपने आप टूटने शुरू हो जाते हैं । केवल चाबी से काम नहीं चलता कभी-कभी हम लोग धोखे में रह जाते हैं और मान लेते हैं कि निष्काम कर्म का इतना बड़ा सिद्धान्त हमारे पास है फिर चिन्ता क्या है ? । सेठ के घर में चोरी हो गई । सेठ ने पहरेदार से पूछा, 'रात को तम क्या कर रहे थे ? क्या नींद ले रहे थे ?' वह बोला- 'नहीं, नींद नहीं ले रहा था । विलकल जाग रहा था ।' 'क्या तुम्हें चोरी का पता नहीं चला ?' पहरेदार ने कहा- 'चोर आया, यह भी मुझे पता चल गया, वह पेटी लेकर गया, यह भी मैंने देख लिया । मैंने उसे इसलिए नहीं रोका कि उस पेटी की चाबी तो आपके पास थी ।' सचमुच कभी-कभी हम भी इस भाषा में सोचने लग जाते हैं कि चाबी तो हमारे पास है | गीता हमारे पास है, उत्तराध्ययन हमारे पास है | फिर चिन्ता की क्या बात है ? किन्तु केवल चाबी से ही काम नहीं चलता । हम मूल बात पर ध्यान दें, प्रयोग पर ध्यान केन्द्रित करें । अनासक्ति का सिद्धान्त जितना महत्त्वपूर्ण है उतना ही महत्वपूर्ण है उसकी साधना का प्रयोग । ग्रन्थ या पंथ का धर्म बड़ा नहीं होता | धर्म बड़ा वह होता है, जो हमारे जीवन के व्यवहार में उपलब्ध होता है । गीता का अनासक्ति का सिद्धान्त बहुत बड़ा है किन्तु हमारे लिए वह बड़ा तव होगा जब जीवन में अनासक्ति का सिद्धान्त उतर आएगा और यह तभी सम्भव है जब हम उसके प्रयोग अपने जीवन में करेंगे । सिद्धान्त और प्रयोग—इन दोनों वातों को साथ में समझें तो सचमुच हम एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त के साथ न्याय करेंगे और अपने साथ भी न्याय करेंगे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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