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सर्वांगीण दृष्टिकोण २११
रहा है, सुन्दरपत्रकार का नहीं है, क्योंकि ने के
पुरस्कार की घोषणा की। सबके सामने समस्या थी कि शर्तों की पूर्ति कैसे हो? तीन चित्रकारों ने चित्र बनाना स्वीकार किया। एक चित्रकार चित्र ले जब राजा के पास पहुंचा तो उसे देख राजा ने कहा-'चित्र सुन्दर है, मुंह से बोल रहा है पर सत्य नहीं है, क्योंकि इसमें दो आंखें दिखाई गई हैं।' दूसरे चित्रकार का चित्र देख राजा ने कहा-'चित्र साक्षात् बोल रहा है, सुन्दर भी है, पर इसमें एक आंख फूटी हुई दिखाई गई है, इसलिए यह नग्न सत्य है।'
तीसरे ने तन्मयता से सोचकर चित्र बनाया। उसने कल्पना से दिखाया कि राजा शिकार के लिए प्रत्यंचा ताने हुए है जिससे हाथ की ओट में एक आंख आ गई। राजा ने उसे देखकर प्रसन्नता व्यक्त की और उसे एक लाख रुपयों का इनाम मिल गया। तीसरा चित्र न असत्य था और न नग्न सत्य किन्तु पाक्षिक सत्य था।
कई लोग स्पष्ट कहने में अपना गौरव मानते हैं। पर नग्न सत्य ग्राह्य नहीं होता। कई लोग दूसरे को प्रसन्न रखने के लिए असत्य का सहारा लेते हैं। वह उनके अहित के लिए होता है। पाक्षिक सत्य ग्राह्य भी होता है और हितकर भी। ___हमारा दृष्टिकोण सर्वांगीण, सामंजस्यपूर्ण और सापेक्ष होना चाहिए। सर्वांग दृष्टि में सत्य की दूरी नहीं होती। सारे विचारों को एक सूत्र में पिरोने से माला बन जाती है। यही अनेकान्त है। एक माला न बनने से एक-एक मनका बिखर जाता है। ___सत्य को किसी पर थोपने का अधिकार मुझे नहीं है। मैंने तो स्याद्वाद के विचार से अपने-आपको बांधा है। मुझे लगता है दृष्टि सत्योन्मुख है तो जीवन में कोई क्लेश नहीं है। आचार्यश्री ने मुझे सत्य की दृष्टि दी है। आगम-शोधकार्य के लिए आचार्यश्री ने कहा-'हम बड़ा दायित्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। कहीं भी साम्प्रदायिक दृष्टि से मत सोचना कि हमारी मान्यता क्या है? जो सत्य लगे उसे प्रकट कर देना है। अपनी परम्परागत मान्यता के लिए उल्लेख किया जा सकता है कि हमारी मान्यता यह है। पर सत्य को अपनी मान्यता से नहीं रंगना है।'
व्यक्ति अधिक प्रिय है या सत्य? परिस्थिति अधिक प्रिय है या सत्य? इस प्रश्न का उत्तर आचार्य भिक्षु ने दिया था। उन्होंने
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