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सत्-व्यवहार १७५
साहित्य में उसका गौरव के साथ प्रयोग हुआ है । आज 'पाषंड' शब्द कुत्सित बन गया है । 'पाषंडी' कहने से अप्रिय - सा लगता है ।
जैनेन्द्र-असुर शब्द हमारे लिए घृणा का है पर ईरान और फारस में असुर देव के लिए है ।
मुनिश्री - प्राचीन साहित्य में असुर शब्द देव के अर्थ में था । यक्ष भी महत्त्वसूचक था। आज उससे भिन्न है । आज साहसिक शब्द प्रशंसासूचक है परंतु जब चला था उस समय अविमृश्यकारी - बिना विचारे कार्य करने वाले के अर्थ में था । अर्थ के उत्कर्ष का अपकर्ष हो गया।
राजेन्द्र - तो क्या शब्द विचार - जनित है? मुनिश्री - शब्द प्रवृत्ति और विचार दोनों की सृष्टि है। शब्द से अपने आप कोई शक्ति नहीं, वह मात्र द्योतक है। कर्म तेजस्वी होता है तो शब्द गौरव पा लेता है। उसके क्षीण होने पर शब्द - शक्ति भी क्षीण हो जाती है । राजा यानी ईश्वर जो था, वह आज राज-कर्म क्षीण होने से अप्रिय बन गया, इतिहास का शब्द रह गया ।
राजेन्द्र-कर्म समाज-जनित है या विचार-जनित ?
मुनिश्री - कोई भी कर्म पहले विचार में आता है । व्यवहार विचार की प्रतिकृति है । विचार और कर्म का कार्य-कारण सम्बन्ध है | विचार के विकास की पृष्ठभूमि समाज है । इसलिए हम कह सकते हैं - समाज से विचार और विचार से कर्म निष्पन्न होता है ।
राजेन्द्र - सामाजिक कर्म के निर्माण में विचार कारण है या विचार के निर्माण में सामाजिक घटना ?
मुनिश्री - सामाजिक घटनाओं में से विचार फलित होते हैं । फिर उनसे कर्म निष्पन्न होते हैं ।
राजेन्द्र - जो विचार हममें हैं, वे बाह्य प्रतिक्रिया से पैदा हुए हैं, इसलिए वे क्रियात्मक नहीं, किन्तु प्रतिक्रियात्मक हैं । जैसे गणित का प्रश्न है, उसका हल अनूठा हो सकता है पर वह अनूठा होने पर भी उस प्रश्न का बन्दी है ।
जैनेन्द्र- ( ये कहते हैं) अपने विचार के विभु नहीं, अधीन हैं । मुनिश्री - प्रश्न के बाद उत्तर निष्पन्न होता है, इसलिए उसका प्रश्न
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