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________________ १४२ मैं : मेरा मन : मेरी शान्ति संवेदन होता है। इन्द्रियां दो प्रकार की हैं-ज्ञानात्मक और संवेदनात्मक। श्रोत्र और चक्षु-दो इन्द्रियां संवेदनात्मक नहीं हैं, केवल ज्ञानात्मक हैं। शेष तीन इन्द्रियां संवेदनात्मक हैं। आम मीठा है और नींबू खट्टा है-यह ज्ञान है। इसकी अनुभूति खाने से होती है। संवेदना साक्षात् सम्बन्ध के बिना नहीं होती। ज्ञानात्मक इन्द्रियां अपने विषयों को दूर से जान लेती हैं। संवेदनात्मक इन्द्रियों को अपने विषय से साक्षात् सम्बन्ध करना होता इन्द्रियां अपने आप में अच्छी या बुरी नहीं हैं। वे मन के संयोग से अच्छी या बुरी बनती हैं। इन्द्रियां वर्तमान का ज्ञान करती हैं और मन त्रिकाल का ज्ञान करता है। मन आंख से संबद्ध न हो, उस समय आंख खुली होने पर भी अनुभूति नहीं होती। इन्द्रियों में सारा प्रकाश मन द्वारा आरोपित होता है। इन्द्रियों की शुद्धि मनःशुद्धि से स्वतः प्राप्त होती है। प्राचीन साहित्य में इन्द्रियों के दमन का उल्लेख मिलता है। आजकल दमन शब्द अप्रिय लगता है, क्योंकि दमन का अर्थ अत्याचार समझा जाता है। दमन शब्द के अर्थ का अपकर्ष हो गया है, इसलिए ऐसा लगता है। शमन शब्द का प्रयोग प्रिय है; जबकि दमन और शमन में कोई अन्तर नहीं है। संस्कृत में 'शमु दमु च उपशमे' धातु है। दम का वही अर्थ है, जो शम धातु का है। दूध उफनता है तब पानी के छींटे डालकर उसका शमन किया जाता है। वैसे ही इन्द्रियों के वेग का शमन या दमन किया जाता है। दमन का अर्थ बलात्कार या अत्याचार नहीं है। इन्द्रियों की गति बहिर्मुखी है। उन्हें बाहर से लौटाकर अपने-अपने गोलक में स्थापित करना दमन है। उन्हें कष्ट देने और प्रयोग से रोकने की बात आत्मविमुखता की बात है। जहां कष्ट-लीनता है, वहां धर्म कैसे होगा? धर्म आनन्दानुभूति है। वह आत्म-लीनता में हो सकता है। जैनेन्द्र-क्या मुनि-जीवन में कष्ट-लीनता नहीं है। मुनिश्री-मैं समझता हूं नहीं है। जैनेन्द्र-क्या कोई कष्ट नहीं आता? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003068
Book TitleMain Mera Man Meri Shanti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size9 MB
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