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अध्यात्म-बिन्दु १३३
७. विज्ञान और अध्यात्म मनुष्य का स्वभाव है कि वह अज्ञात को ज्ञात करना चाहता है। इसीलिए उसमें सत्य-शोध की वृत्ति का विकास हुआ है। अखण्ड सत्य में अध्यात्म और विज्ञान दोनों समाविष्ट हो जाते हैं।
जब से मनुष्य ने जाना है, तब से उसने प्रयोग भी किए हैं। प्रायोगिक ज्ञान ही विज्ञान है। मान्यता का ज्ञान विज्ञान नहीं है। तर्कशास्त्र में उसे विकल्प कहा जाता है। विज्ञान भी तथ्य को पहले पूर्व-मान्यता के रूप में स्वीकार करता है, फिर प्रयोग के द्वारा उसे सिद्ध करता है। जो प्रयोग द्वारा प्रमाणित नहीं होता, वह असत्य सिद्ध हो जाता है।
वैज्ञानिक बोध विश्लेष और संश्लेष की प्रक्रिया तथा उसके लब्ध परिणाम से होता है। अध्यात्म का बोध प्रत्यक्षानुभूति से प्राप्त होता है। यही इन दोनों में अन्तर है। ८ अनशन अनशन आत्महत्या है-इसे मैंने पकड़ा है पर यह नहीं पकड़ सका, आत्म क्या है? मैंने देह को ही आत्म मान रखा है इसलिए मैं देह-पात को ही आत्महत्या मान बैठा हूं। क्या चैतन्य का प्रदीप आत्म नहीं है? क्या दर्शन का वातायन आत्म नहीं है? क्या पवित्रता का प्रकोष्ठ आत्म नहीं है? देह का भारवहन इसलिए है कि चैतन्य का प्रदीप जलता रहे, दर्शन का वातायन खुला रहे और पवित्रता का प्रकोष्ठ भरा रहे। यदि ऐसा न हो, प्रदीप के बुझने, वातायन के बन्द होने और प्रकोष्ठ के खाली होने की स्थिति प्राप्त हो तो देह के भारवहन की मर्यादा अपने आप टूट जाती है।
यह आत्महत्या नहीं है, किन्तु आत्म-संयम है। यही है अनशन अर्थात् जिसके लिए देह है उसी की सुरक्षा के लिए देह का विसर्जन।
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