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१०२ मैं : मेरा मन : मेरी शान्ति
राजा ने कहा- 'बकरी को खूब खिलाओ पर शरीर में बढ़नी नहीं चाहिए।' गांव वाले समस्या में उलझ गए। रोहक ने मार्ग ढूंढ़ लिया। बकरी को शेर के पिंजड़े के पास ले जाकर बांध दिया। उसे चारा खूब देते पर बकरी का शरीर पुष्ट नहीं हुआ। जैसे ही शेर दहाड़ता, उसका खाया-पिया हराम हो जाता। यह भय का बन्धन है।
एक आदमी किसी सेठ के पास गया। घर में विवाह था। सेठ से कुछ सामग्री लेनी थी। सेठ से मांग की तो वह बोला, 'ठहरो, अभी यहां कोई आदमी नहीं है।' आधा घंटा बाद फिर मांग की तो सेठ ने फिर वही उत्तर दिया। तीसरी बार मांग की और वही उत्तर मिला। तब आगन्तुक ने कहा- 'मैं तो आपको आदमी समझ कर ही आपसे मांगने आया था।' यह मानदण्ड का बन्धन है।
बाहरी बंधनों की क्या बात कहूं। अपने भीतर इतने बन्धन हैं कि उनसे निबटे बिना बाहरी बन्धनों से निबटना, नहीं निबटने के समान हो जाता है।
मुझे मुक्ति प्रिय है, आपको भी प्रिय है, हर व्यक्ति को प्रिय है। किन्तु दूसरों को बांधने की मनोवृत्ति को त्यागे बिना क्या हम मुक्त रह सकते हैं? अपने से छोटे को मैं बांधता हूं, इसका अर्थ है, मैं अपने बड़ों से बंधन का रास्ता साफ करता हूं। आप बंधना न चाहें, इसका अर्थ होना चाहिए कि आप दूसरों को बांधना न चाहें। बन्धन बन्धन को जन्म देता है और मुक्ति मुक्ति को। बाहरी बन्धनों से मुक्ति पाने की अनिवार्य शर्त है मानसिक मुक्ति, आन्तरिक मुक्ति।
१८ आर्जव
गौतम ने पूछा, 'भन्ते! आर्जव से मनुष्य क्या प्राप्त करता है?' भगवान् महावीर ने कहा, 'गौतम! आर्जव से मनुष्य काया की ऋजुता, भावों की ऋजुता, भाषा की ऋजुता और संवादी प्रवृत्ति-कथनी और करनी की समानता को प्राप्त करता है।'
आर्जव का अर्थ है सरलता। सरलता वह प्रकाश-पुंज है, जिसे हम चारों ओर से देख सकते हैं। सरलता वह प्रकाश-पुंज है, जिसमें हम
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