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नई अर्थनीति के पेरामीटर
किसी पर अपनी व्यावसायिक या वैचारिक प्रभुसत्ता स्थापित न कर सके। अगर इस प्रकार की अर्थव्यवस्था बनती है तो आज की मांग को कुछ समाधान मिलेगा। यह नहीं कहा जा सकता कि कोई व्यवस्था शाश्वत बन जायेगी। शाश्वत तो कुछ है ही नहीं किन्तु जो मनुष्यकृत है, उसे अवश्य समाधान मिल सकता है यदि हम इन व्यवस्थाओं को समन्वित कर सके महावीर, गांधी, मार्क्स और केनिज को मिला सकें। जहां केनिज कहते हैं-खूब विकास करो, खूब उत्पादन करो, संसाधनों का विकास करो वहां महावीर का यह स्वर भी सुनाई दे---'कयाणं अहं अप्प वा बहुं वा परिग्गहं परिच्चइस्सामि' वह दिन धन्य होगा, जब मैं अल्प बहु परिग्रह का परित्याग करूंगा। एक ओर परिग्रह के परित्याग की भावना, विसर्जन की भावना है, दूसरी ओर अर्जन की भावना है। ये दोनों स्वर दायें बाएं सुनाई देंगे, तो हमारी नयी अर्थ व्यवस्था नया समाधान देने वाली होगी, कार्यकर बनेगी, सार्थक बनेगी। जहां मात्र एक ही स्वर सुनाई देगा, वहां समाधान नहीं मिलेगा। इसलिए हम दोनों सत्यांशों को मिलाएं, दोनों एक साथ हमारे कानों में बराबर गूंजते रहे तो न संपदा के साथ उन्माद बढ़ेगा और न गरीबी-भूखमरी रहेगी। एक नयी व्यवस्था में आदमी सुख की सांस ले सकेगा।
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