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________________ महावीर, मार्क्स, केनिज और गांधी द्वारा साधन-शुद्धि का जो सूत्र था, बीज था, वह श्रीमद् राजचन्द्र के पास पहुंचा और श्रीमद् राजचन्द्र के द्वारा वह सूत्र महात्मा गांधी तक पहुंचा।' - इस प्रकार साधनशुद्धि की एक पूरी श्रृंखला और तादात्म्य की कड़ी प्राप्त होती है। श्रीमद् राजचन्द्र और महात्मा गांधी साधन-शुद्धि पर अटल विश्वास करते थे। किन्तु मार्क्स शुद्ध आर्थिक व्यक्ति थे। जहां शुद्ध आर्थिक चिंतन होता है, वहां साधन-शुद्धि का विचार गौण बन जाता हैं। ऐसा नहीं है कि वे हिंसा के समर्थक या युद्ध के समर्थक थे किन्तु उनके सामने यह प्रश्न नहीं था कि केवल साधन-शुद्धि पर ही चलना है। गांधी ने कहा-'शुद्ध साधन से स्वतंत्रता मिलती है तो मुझे मान्य हैं। अगर युद्ध या हिंसा से मिलती है तो आज ही मैं अपने संघर्ष को त्यागने के लिए तैयार हूं । ऐसी स्वतंत्रता मुझे नहीं चाहिए। मैं आजादी चाहता हूं अहिंसा के द्वारा, चाहे वह सौ वर्ष बाद ही मिले।' मार्क्स और केनिज का साधन-शुद्धि पर इतना अटल विश्वास नहीं था। क्योंकि ये दोनों आध्यात्मिक नहीं आर्थिक व्यक्तित्व थे। केनिज के विचार . मार्क्स ने साधन-शुद्धि के विचार को गौण कर दिया । केनिज ने कहा-'अभी हमें संपन्नता का विकास करना है, इसलिए अभी हमारे लिए अहिंसा, नैतिक मूल्य आदि का विचार करने का अवकाश नहीं हैं।' उन्होंने कहा—'अर्थशास्त्र ही विज्ञान है।' इस विज्ञान के संदर्भ में नैतिकता अनैतिकता का उनके सामने कोई प्रश्न नहीं था। इन पर विचार करना एथिक्स का काम है, नीतिशास्त्र का काम है। नीतिशास्त्र के विषय को अर्थशास्त्र का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए। इसलिए वे नैतिकता, अहिंसा, साधनशुद्धि चरित्र आदि किसी भी विषय को महत्व देने के लिए तैयार नहीं हुए। प्रयोजन पांचवा पेरामीटर है प्रयोजन । सामने कोई प्रयोजन होना चाहिए। महावीर ने एक प्रयोजन का प्रतिपादन किया-अव्याबाध सुख—हमें ऐसा काम करना है, जिसके पीछे कोई बाधा न हो, कोई दुःख न हो । एक दुःखानुगत सुख है और एक केवल सुख । एक सुख होता है, जिसके पीछे-पीछे दुःख चलता है जैसे दिन के पीछे रात चलती है। वह दुःखानुगत सुख होता है । वह अव्याबाध सुख नहीं होता, साबाध सुख होता है। महावीर ने कहा, ऐसा सुख पाया जा सकता है, जिसके पीछे कोई बाधा नहीं है, जो शाश्वत है। उस सुख को पाना हमारा प्रयोजन है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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