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________________ व्यक्तिगत स्वामित्व एवं उपभोग का सीमाकरण अर्थ की अभीप्सा को हम तीन आवस्थाओं में देखें• न्यूनतम • अधिकतम . असीम न्यूनतम स्वामित्व जीवन चलाने के लिए जितना अपेक्षित होता है, वह न्यूनतम आवश्यकता कही जा सकती है । यह न्यूनतम स्वामित्व की सीमा है । रोटी, कपड़ा, मकान—ये न्यूनतम स्वामित्व के अन्तर्गत आते हैं। अधिकतम स्वामित्व अधिकतम को अच्छा नहीं कहा जा सकता। फिर भी उसकी एक सीमा है । खादी की एक धोती या साड़ी से भी काम चल सकता है। दो हजार, दस हजार और पचास हजार की साड़ी से भी काम नहीं चलता। समाचार पत्रों में पढ़ा-करोड़ों रुपए . की ड्रेस लोग रखते हैं। न्यूनतम खादी का एक कुर्ता, धोती और टोपी-जीवन इतने, से चला जाता है। गांधी का उदाहरण सामने है। उन्होंने तो मात्र एक धोती से ही काम चला लिया। आज के लोग इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि इन सादे और सीमित वस्त्रों में कितनी शान्ति और सहूलियत रहती है । कीमती वस्त्र पहनते ही सबसे पहले भय लगना शुरू हो जाता है। शरीर पर पोशाक सवार होते ही भय भी सवार हो जाता है। गन्दे हो जाने का भय, कट-फट जाने का भय, सिमट-सिकुड़ जाने का भय, चमक-दमक कम हो जाने का भय—ऐसे अनेक भय सताने लगते हैं। भय को पैदा करती है अतिरिक्तता ___ एक आदमी को भय बहुत लगता था। वह किसी मांत्रिक के पास गया, अपनी समस्या बताई। मांत्रिक ने एक ताबीज बनाकर उसे देते हुए कहा-इसे पहन लो, फिर तुम्हें किसी तरह का भय नहीं लगेगा। कुछ दिन बाद वह फिर मांत्रिक के पास आया। मांत्रिक ने पूछा- क्यों, अब तो ठीक हो? भय तो नहीं लगता? उसने कहा-और किसी बात का भय नहीं लगता किन्तु एक डर बना रहता है कि ताबीज कहीं खो न जाए। ___ जब कभी व्यक्ति अतिरिक्त उपभोग करता है, सबसे पहला भय इस बात का होता है कि कहीं वह खराब न हो जाए। अतिरिक्त आभूषण पहनते ही यह भय सवार हो जाता है कि कहीं भूल से गिर न जाए, कोई चुरा न ले, कोई छीन न ले: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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