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________________ अहिंसा और शान्ति का अर्थशास्त्र है । उस समय के जो उद्योग थे, उनका वर्गीकरण हुआ। उन्हें व्रत की आचार संहिता में कर्मादान कहा गया। पन्द्रह कर्मादान बतलाए गए। व्रती समाज के सदस्य के लिए, श्रावक के लिए पन्द्रह कर्मादान का निषेध किया गया, उनके सीमाकरण की । बात कहीं गई। उस समय का एक उद्योग था—इंगालकम्मे कोयले का उद्योग। एक था—वणकम्मे ईंधन का उद्योग । एक उद्योग था, जंगलों को जलाना। एक उद्योग था खेती की भूमि बढ़ाने के लिए तालाब आदि को सुखाना। उस समय ये कुछ उद्योग चलते थे .. महावीर ने कहा- इनकी भी सीमा करो, निरंकुश रूप में उद्योगों का विस्तार मत दो और अपने हाथ में इन्हें ज्यादा केन्द्रित मत करो। महावीर का एक श्रावक था-उद्दालपुत्र । जाति का कुम्हार था। उसकी पांच सौ दुकानें थीं। सैकड़ों-सैकडों आवां उसके चलते थे। कुम्भहार व्यवसाय का एक बड़ा उद्योगपति था । उद्दालपुत्र ने महावीर से सीमाकरण का व्रत स्वीकार किया था। सीमाकरण का अर्थ असीम और ससीम—ये दो शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण है। असीम का अर्थ है हिंसा की ओर प्रस्थान । सीमाकरण का अर्थ है शान्ति की ओर प्रस्थान । एक योग्य व्यक्ति, जिसमें व्यावसायिक क्षमता, बौद्धिक क्षमता है, वह व्यक्ति अपनी व्यावसायिक क्षमता के द्वारा इतना अर्जित कर लेता है कि हजारों-लाखों के लिए एक गड्डा बन जाता है। उसके लिए सीमा कुछ नहीं है। आखिर समृद्धि बढ़े तो कितनी बढ़े? इस प्रश्न के संदर्भ में कहा गया--पर्याप्त समृद्धि होनी चाहिए किन्तु पर्याप्त की कुछ सीमा तो होगी । अपर्याप्त कहां तक होगा? एक व्यक्ति के लिए एक नहीं, दस मकान भी अपर्याप्त हैं । कलकत्ता में भी एक कोठी चाहिए । बम्बई, दिल्ली और मद्रास में भी एक-एक भव्य कोठी चाहिए। जहां जाए, वहां उसके लिए अपना एक घर हो । कहां-कहां बंगले बनाता रहेगा? कहीं कोई सीमा तो निर्धारित करनी होगी। अर्थ का संग्रह इतना असीम बन जाए तो फिर उसका परिणाम क्या होगा, यह सोचा भी नहीं जा सकता। आधुनिक अर्थशास्त्र की समस्या साधन-शुद्धि का विचार न होना आधुनिक अर्थशास्त्र की सबसे बड़ी समस्या है। इसके बिना हम अहिंसा और शान्ति की बात नहीं सोच सकते । वर्तमान में हो रहे युद्धों के पीछे क्या यह असीम वाली बात नहीं है? कारण खोजें तो निश्चित ही इस सचाई का पता चलेगा। अस्त्र-शस्त्रों के बड़े-बड़े कारखाने हैं । शस्त्र-उद्योग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003067
Book TitleMahavira ka Arthashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2007
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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