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महावीर का अर्थशास्त्र कहा- धम्मेणं वित्ते कप्पेमाणा-अल्प इच्छा वाला व्यक्ति धर्म के साथ अपनी आजीविका चलाता है।
हमारे सामने दो शब्द हैं-अल्पेच्छ और महेच्छ । एक है धर्म के साथ जीविका चलाने वाला, दूसरा है अधर्म के साथ जीविका चलाने वाला। धर्म के साथ का तात्पर्य है-न्यायसंगत, करुणा के साथ । महावीर के एक परम उपासक श्रावक श्रीमद्-राजचन्द्र की चर्चा करूं । गांधीजी को अहिंसा का बीजमंत्र देने वाले और जिन्हें बोधिदीप मिला तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य से । श्रीमद् राजचन्द्र ने एक व्यापारी से सौदा किया। जवाहरात का व्यवसाय था। भावों में यकायक तेजी आ गई। सामने वाले व्यापारी को एक मुश्त पचास हजार का घाटा हो रहा था । श्रीमद् राजचन्द्र ने उससे कहा-तुम एग्रीमेंट का वह रुक्का लाओ। व्यापारी बोला–श्रीमन् ! आप चिन्ता न करें । मैं आपकी एक-एक पाई चुका दूंगा, किन्तु अभी मेरी स्थिति नहीं है । श्रीमद् राजचन्द्र ने कहा-चुकाने या न चुकाने की बात में नहीं कर रहा । मैं एक बार वह रुक्का देखना चाहता हं । उसने सोचा, रुक्का पाते ही ये कोर्ट में केस कर देंगे और मैं फंस जाऊंगा। इसलिए वह न देने आग्रह करता रहा किन्तु अन्तत: उसे रुक्का देना ही पड़ा। रुक्का हाथ में लेकर उसे फाड़ते हुए श्रीमद् राजचन्द्र ने कहा-'राजचन्द्र दध पी सकता है, किसी का खून नहीं पी सकता। यह सौदा मैं रद्द करता हूं।'
इसका नाम है करुणा । अल्प इच्छा वाला व्यक्ति धर्म के साथ अपनी आजीविका चलाता है । वह किसी के साथ अन्याय नहीं करता, क्रूर व्यवहार नहीं करता, शोषण नहीं करता, हेराफेरी नहीं करता, धरोहर को नहीं छिपाता । इच्छाजयी
तीसरे प्रकार का व्यक्ति होता है अनिच्छ । उसे हम सामाजिक प्राणी नहीं कहेंगे। वह अनिच्छ या इच्छाजयी होता है। जो साधु-संन्यासी बनकर समाज से अलग हो जाता है, उसके कोई प्रवृति नहीं, कोई कारखाना नहीं, कोई व्यापार नहीं, केवल साधना का जीवन होता है । भगवान् महावीर ने कहा-तीसरी कोटि की बात छोड़ दें। वैसे इस कोटि के व्यक्ति भी कम नहीं हुए महावीर के उस व्रती समाज में अल्पेच्छ लोगों की संख्या पाँच लाख थी और इच्छाजयी लोगों की संख्या पचास हजार थी योरोप में हमारे समण समणियां जाते हैं तो वहां के लोग यह देखकर आश्चर्य करते हैं ये सर्दी, गर्मी कैसे सहन करते हैं? पैसा नहीं रखते हैं। आज के युग में कोई आदमी ऐसा हो सकता है, जिसके पास पैसा न हो? वहां के लोग कल्पना भी नहीं करते।
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