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विकास की अर्थशास्त्रीय अवधारणा मनुष्य वे हैं, जो अल्पेच्छ, अल्पारंभ हैं। तीसरी कोटि के मनुष्य वे हैं, जो इच्छाजयी, अनारंभ हैं। महेच्छा ____ आज का अर्थशास्त्र कहता है-इच्छा को बढ़ाओ। इच्छा बढ़ेगी तो महारंभ होगा. बड़ी प्रवत्ति होगी। दसरा तत्त्व है अल्प इच्छा, अल्पारंभ । इच्छा भी अल्प
और आरम्भ भी अल्प । महावीर ने दोनों वृत्तियों का विश्लेषण करते हुए कहा-जो महारंभ होगा, महेच्छ होगा। वह आजिविका अधर्म के साथ चलाएगा, धर्म का विचार नहीं करेगा। ऐसा कह कर महावीर ने मानो आज के अर्थशास्त्र की भविष्यवाणी कर दी थी। महावीर ने कहा-वह पुरुष चण्ड, रुद्र, क्षुद्र, वक्र, दुःशील, दुष्प्रत्यानंद होगा। महेच्छ पुरुष की प्रकृति का महावीर ने सजीव चित्रण किया है । महा-इच्छा
और महारंभ प्रवृत्ति वाला व्यक्ति कोई विचार नहीं करेगा। अपने लिए उपयोगी है, लाभ मिल रहा है तो वह किसी के प्राण-वियोजन से भी कंपित नहीं होगा।
आज विलासिता और सौन्दर्य प्रसाधनों के निर्माण के कितने-कितने निरीह और मूक पशु-पक्षियों की निर्मम हत्या की जा रही है। मुलायम और कठोर प्लास्टिक बनाने के लिए स्थापित किए जा रहे कारखानों में लाखों चूजों के अविकसित परों को काटकर इस्तेमाल किया जा रहा है । मांस के निर्यात के लिए कितने भी बूचड़खाने लगाने पड़ें, कोई चिन्ता की बात नहीं है । सारा कुछ धन के पीछे हो रहा है । इतना चण्ड, रौद्र हुए बिना विपुल धन की प्राप्ति नहीं हो सकती । माया, कूट-कपट, प्रपंचयह सब भी इसके पीछे करना पड़ता है। जाली खाते, रिश्वत, धमकी, हत्या, अपहरण-आज क्या-क्या नहीं किया जा रहा है। सब उस महाइच्छा वाले वर्ग का चित्रण है, जो परिग्रह में निरन्तर डूबा हुआ है।
यह सोचा भी नहीं जा सकता—इच्छा, परिग्रह और आरम्भ को बढ़ाकर इन दुषवत्तियों से कोई बच सकेगा। हम प्रिय के साथ हित की बात सोचें । इच्छा को अल्प किए बिना, नियंत्रित किए बिना हित की बात को जोड़ा नहीं जा सकता। अल्पेच्छ 'एक मनुष्य अल्पेच्छ होता है । इच्छा है, किन्तु अल्प है । ऐसा व्यक्ति कारखाना लगाएगा, किन्तु पूंजी को केन्द्रित नहीं करेगा। महात्मा गांधी ने जो विकेन्द्रित अर्थनीति
और विकेन्द्रित सत्ता की बात कही, वह महावीर के इसी अल्पेच्छ शब्द का अनुवाद है। अल्पेच्छ या अल्पारंभ का तात्पर्य ही विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था है। महावीर ने
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