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विकास की अर्थशास्त्रीय अवधारणा है-स्वार्थ जितना बढ़ेगा, क्रूरता भी उतनी ही बढ़ेगी। स्वार्थ जितना सीमित होगा, करुणा का उतना ही विस्तार होगा। स्वार्थ .भी शिखर पर और करुणा भी शिखर पर, यह स्थिति कभी सम्भव नहीं है। तर्क रोजगार का
रोजगार का तर्क भी बहुत श्लथ है । जो युग आ रहा है, वह रोबोट का युग है, कम्प्यूटर का युग है। जहां हजार मजदूर काम करते थे, वहां आज पांच मजदूरों से ही काम चल जाएगा। रोजगार कहां मिला? इस मशीनी युग में आदमी ज्यादा बेरोजगार हो रहा है, होता जा रहा है। प्रयत्न है गरीबी और बेरोजगारी मिटाने का किन्तु जैसे-जैसे यांत्रिक विकास हो रहा है, रोबोट मनुष्य के हाथ से काम छीन रहा है, गरीबी और बेरोजगारी उतनी ही रफ्तार से बढ़ रही है । इस इलेक्ट्रोनिक युग ने कहां तक पहुंचा दिया है-जापान जैसे देश में तो धर्मगुरु का काम भी रोबोट से हो रहा है। किसी की मृत्यु हो जाती है, उसका परिवार प्रार्थना हेतु धर्मस्थल में जाता है तो रोबोट उनका अभिवादन करता है, उन्हें धैर्य और सांत्वना देता है, पूरा धर्म का पाठ उन्हें सुना देता है। अन्त में आशीर्वाद देकर धन्यवाद के साथ उन्हें विदा करता है । यह सारा काम रोबोट करता है । अपेक्षा कहां है? ___मनुष्य की अपेक्षा कहां है? ऐसा लगता है कि इस रोबोट और कम्प्युटर के युग में मनुष्य को मौन धारण कर हिमालय की किसी गुफा में शरण ले लेनी चाहिए। मनुष्य ने बहुत श्रम किया है, अब उसके लिए विश्राम का क्षण आ गया है। आचार्य ने बहुत सुन्दर कहा-सरिंभा तन्दुलप्रस्थमूला-मनुष्य की सारी प्रवृत्ति एक सेर चावल के लिए है। अगर सेर भर चावल की जरूरत न हो तो फिर प्रवृत्ति की भी कोई अपेक्षा न रहे। किन्तु इस औद्योगिक विकास ने अर्थ को मनुष्य पर इतना हावी कर दिया है कि उसके आगे वह गौण हो गया है । प्रश्न प्रति व्यक्ति आय का ___ अर्थशास्त्र का एक उद्देश्य है प्रति व्यक्ति आय । निश्चित ही प्रति व्यक्ति आय उन देशों में बढ़ी है, जो विकसित देश हैं, किन्तु आज ऐसा लगता है-पूंजीवाद (कैपिटलिज्म) भी अपनी अंतिम सांसे गिनने लगा है । जापान, अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्रों में भी बेरोजगारी बढ़ने लगी है। आंकड़े बताते हैं कि वहां भी गरीबी की रेखा के नीचे जीवन जीने की नौबत आ रही है। रूस की स्थितियों से परिचित लोग जानते हैं साम्यवाद के शासनकाल में भी हजारों-हजारों लोग सड़क के किनारे पड़े
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