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१६.
महावीर का अर्थशास्त्र चाणक्य सूत्र में वे लिखते हैं
सुखस्य मूलं धर्मः। धर्मस्य मूलं अर्थ: ।
अर्थस्य मूलं राज्य: । राज्यस्य मूलं इन्द्रिय-जयः । सुख का मूल है धर्म । धर्म का मूल है अर्थ । अर्थ का मूल है राज्य और राज्य का मूल है इन्द्रिय-जय। ___इन्द्रिय-जय को छोड़कर केवल राज्य और अर्थ की कल्पना चाणक्य नहीं कर सकते । चाणक्य सम्राट चन्द्रगुप्त के अमात्य थे और चन्द्रगुप्त भगवान् महावीर के शिष्य । मौर्य साम्राज्य में चन्द्रगुप्त ने कुछ नई व्यवस्थाएं दी थीं और उन व्यवस्थाओं के सूत्रधार थे महामात्य चाणक्य । चाणक्य सूत्र में उन्होंने जिस सत्य का प्रतिपादन किया है, वह एक समन्वित दृष्टिकोण है। दो प्रणालियां
वर्तमान में दो मुख्य प्रणालियां प्रचलन में हैं• कैपिटलिज्म • कम्युनिज्म।
एक पूंजीवादी प्रणाली है और एक साम्यवादी प्रणाली। दोनों की फिलॉसफी है मैटेरियलिज्म-भौतिकवाद । पूंजीवाद का दर्शन भी भौतिकवाद है और साम्यवाद का दर्शन भी भौतिकवाद है। दोनों में दर्शन का कोई अन्तर नहीं है। व्रती समाज । ___ महावीर ने एक समाज की कल्पना की थी। उसका नाम हो सकता है व्रती समाज । उसके लिए उन्होंने एक आचार संहिता दी। उसमें से अर्थ-व्यवस्था के बहुत सारे सूत्र फलित होते हैं, अर्थ-व्यवस्था के अनेक सिद्धान्त प्रस्फुटित होते हैं। व्रती समाज की जो परिकल्पना है, उस पर दर्शन की दृष्टि से विचार करें। वह न भौतिकवाद है और न कोई दूसरा अन्य वाद । वह एक समन्वित वाद है, जिसमें भौतिकवाद और अध्यात्मवाद दोनों का समन्वय है । महावीर यथार्थवादी थे। उन्होंने भौतिकवाद को अस्वीकार नहीं किया, पौद्गलिक सुख को अस्वीकार नहीं किया। किन्तु उनमें प्रकृति का भेद अवश्य बतलाया-एक शाश्वत सुख या आन्तरिक सुख है, दूसरा क्षणिक अथवा भौतिक सुख है। __महावीर ने कहा-खणमेत्त सोक्खा बहुकाल दुक्खा- भौतिक सुख क्षणिक होता है, परिणाम में दुःखद होता है । इस अन्तर का प्रतिपादन किया पर यह नहीं
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