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महावीर का अर्थशास्त्र विवाह कैसे करना चाहिए ये सारी बातें बतलायीं । वे जानते थे कि ये बातें सावध हैं, किन्तु उन्होंने इन सबको सावध मानते हुए भी अपना कर्तव्य मानकर लोकानुकम्पा से इनका प्रतिपादन किया। महावीर ने भी ऐसा ही किया। उन्होंने कहा—सबके सब साधु नहीं हैं, साधक नहीं हैं, संसारी हैं। उनका पथदर्शन अगर हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा? ___महावीर ने गृहस्थ के लिए महाव्रत की बात नहीं कही, अणुव्रत की बात कही। त्याग की बात नहीं कही, सीमित भोग की बात कही । यह उनकी अनुकंपा है। इस दृष्टि से महावीर का अर्थशास्त्र-इस कथन में संगति है। शाश्वत के प्रवक्ता
वैज्ञानिक भी चिंतक हैं और महावीर भी चिंतक हैं। कभी कभी यह देखकर आश्चर्य होता है कि वैज्ञानिक कहां से कहां पहुंच जाते हैं। आश्चर्यचकित कर देने वाली हैं वैज्ञानिकों की खोजें। अन्तर एक ही है-वैज्ञानिकों का चिंतन बहुत गहरा होकर भी तात्कालिक है, त्रैकालिक नहीं है। महावीर का चिंतन त्रैकालिक है। वैज्ञानिकों का चिंतन त्रैकालिक होता तो फ्रिज की बात न आती। जब चाहे वस्तुओं को ठण्डा या गर्म रखने वाली मशीन का आविष्कार नहीं होता। आज इनकी व्यर्थता , सामने आ गई है। क्योंकि ये तात्कालिक हैं, त्रैकालिक नहीं हैं। जितनी भी चीजें वैज्ञानिकों ने आविष्कार की हैं, मुझे लगता है कि वे तात्कालिक हैं। कुछ काल के पश्चात् उनकी निरर्थकृत हमारे सामने आ जाती है।
महावीर ने हजारों वर्ष पहले जो बात कही, वह आज भी हमारे बड़े काम की है, आगे भी रहेगी। उन्होंने यंत्रों के आधार पर अन्वेषण नहीं किया, आत्मा के आधार पर किया, अनुभूति के आधार पर किया। यंत्र भौतिक हैं, अनुभूति आत्मिक है। आत्मिक अनुभूति त्रैकालिक होगी, तात्कालिक नहीं होगी। ___ कहा गया—इच्छाओं का नियंत्रण करें। इस बात को लोग कभी बकवास मानते थे। कल्पना करना छोड़ दो, यह कहना कितनी मूर्खता की बात है। इससे तो देश का विकास ही अवरुद्ध हो जायेगा। लोग कहते-आप अपने श्रावकों को प्रेरणा नहीं देते, ये सब ऐसे ही रह जाएंगे। आज चारों ओर से आवाज उठ रही है कि सीमा होनी चाहिए। अध्यात्म और भौतिकवाद का समन्वय
महावीर ने अध्यात्म और भौतिकवाद का समन्वय किया। प्राचीनकाल में एक
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