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जिज्ञासा : समामान
११५ प्रश्न-मस्तिष्कीय परिवर्तन के लिए क्या करना चाहिए? उसका सर्वोत्तम उपाय क्या है?
उत्तर-यदि मस्तिष्कीय प्रशिक्षण की पद्धति शिक्षा के साथ जुड़े तो व्यापक परिवर्तन की संभावना की जा सकती है। भीतर से बदलना है, मस्तिष्क का परिवर्तन करना है तो यह काम शिक्षा से शुरू करना होगा।
प्रश्न-प्रकंपन का क्या सिद्धान्त है ? इसके बारे में जानकारी बहुत कम है। क्या यह विज्ञान भारतीय दर्शन की उपज है?
उत्तर-प्रकंपन का पूरा एक सिद्धान्त है किन्तु जानकारी इसलिए नहीं है कि आज का विज्ञान महज चार सौ वर्ष पुराना है । भारत के विज्ञान से आप परिचित नहीं हैं। सारा का सारा विज्ञान पश्चिम से आयातित है। आज की सारी शिक्षा चाहे वह टेक्नोलोजी की हो या साइंस की, पश्चिम से ली हुई है। प्राचीन भारतीय विद्या के साथ हमारा कोई संपर्क नहीं है। क्योंकि वह सारी विद्या है संस्कृत, प्राकृत में
और आज ये भाषाएं उपेक्षित हैं। सारा शिक्षण मुख्यत: अंग्रेजी के माध्यम से होता है। अंग्रेजी के माध्यम से तो जो पाश्चात्य देशों में हुआ या हो रहा है, वही चिंतन सामने आयेगा। इसीलिए पूज्य गुरुदेव कहते हैं कि शिक्षा का भारतीयकरण होना चाहिए। भारतीय विद्याओं का भी आज की शिक्षा में समावेश होना चाहिए । सुना है-इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में एक ऐसा डिपार्टमेंट बना है, जो प्राचीन भारतीय विज्ञान पर खोज करेगा। इस सन्दर्भ में कुछ साहित्य वहां से निकलना शुरू हुआ है। वहां के कुछ विद्वान् हमसे मिले थे और उन्होंने बताया कि ऐसा काम हम वहां कर रहे हैं। इस संदर्भ में वे हमारा सहयोग चाहते थे। वस्तुत: प्रकंपन का सिद्धान्त भारतीय दर्शन ने हजारों वर्ष पूर्व प्रस्तुत किया है। यदि हम भारत की आत्मा से जुड़ें तो हमें ऐसी अनेक सचाइयों का साक्षात्कार होगा। विज्ञान जो कह रहा है, उस सत्य को भारतीय वैज्ञानिक हजारों वर्ष पहले उद्घाटित कर चुके थे। हम अपनी संपदा को पहचानें तो इस संदर्भ में बहुत समृद्ध बन सकते हैं।
प्रश्न-आचारशास्त्रीय दृष्टि से अच्छे मानव का प्रारूप क्या हो सकता है?
उत्तर-आचारशास्त्रीय दृष्टि से समाज-व्यवस्था, अर्थ-व्यवस्था आदि के संदर्भ . में हम देखें तो अणुव्रत की आचार-संहिता सामने आती है, वह अच्छे आदमी का एक पूरा प्रारूप हमारे सामने प्रस्तुत करती है।
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