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महावीर का अर्थशास्त्र की व्यवस्था भी विकेन्द्रित होगी। यह कभी नहीं हो सकता कि सत्ता केन्द्रित है और अर्थव्यवस्था विकेन्द्रित हो जाये । सत्ता विकेन्द्रित हो और अर्थव्यवस्था केन्द्रित हो, यह भी संभव नहीं। विकेन्द्रीकरण होगा तो सत्ता में, अर्थव्यवस्था में, जीवन की प्रणाली में-सब में होगा। समाज-व्यवस्था और अर्थ-व्यवस्था दोनों साथ-साथ चलती हैं । सत्ता-केन्द्रित अर्थव्यवस्था बनी तो साम्यवाद में अधिनायकवाद जन्मा। जबकि साम्यवाद का संकल्प था स्टेटलेस सोसायटी का । जहां अर्थव्यवस्था केन्द्रित होती है वहां अधिनायकवाद. की अनिवार्यता हो जाती है। यह प्रमाणित हो चुका है इसलिए यह मान कर चलें कि समाज-व्यवस्था और अर्थव्यवस्था दोनों साथ-साथ बदलेंगी। केवल एक को नहीं बदला जा सकता।
प्रश्न-नये अर्थशास्त्र में आबादी पर कंट्रोल कैसे हो, इसका क्या प्रावधान
उत्तर-हमारा चिंतन है—आदमी भूखा और गरीब नहीं है तो आबादी नहीं बढ़ेगी। गरीबी के साथ आबादी का निकट का सम्बन्ध है। गरीबी जितनी बढ़ेगी, आबादी भी उतनी ही बढ़ेगी। जिस दिन भूख मिट जायेगी, पोषण ठीक मिलेगा, आबादी की दर घट जायेगी। कुपोषण और जनसंख्या की वृद्धि का गहरा नाता है। कोई भी इसका विश्लेषण कर सकता है—गरीब आदमी के जितनी संतानें होती हैं, सामान्य आदमी के उतनी नहीं होती।
प्रश्न-छठा कालखंड कब आएगा? क्या उस समय आने वाली स्थितियों को टाला जा सकता है?
उत्तर-छठे आरे में अभी हजारों वर्ष बाकी हैं। हो सकता है-इसी प्रकार औद्योगीकरण चलता रहे, ओजोन की छतरी का छेद बढ़ता चला जाए तो संभव है- हजारों वर्ष बाद आने वाला कालखण्ड पहले ही आ जाए।
आने वाली कठिनाइयों को, कालखण्ड को टाला जा सके, यह तो बड़ा कठिन काम है । आज भी यथार्थ पर चिंतन करने वाले लोग बहुत कम हैं और सुख-सुविधा पर चिंतन करने वाले बहुत ज्यादा हैं। हमने ऐसे लोगों को भी सुना है, जो कहते हैं। शराब पीते-पीते मर जाएं तो चिन्ता की कौन-सी बात है। आखिर एक दिन तो मरना ही है । मनोवृत्ति ही कुछ ऐसी हो गई है आज के आदमी की। इस स्थिति में क्या भविष्यवाणी की जा सकती है?
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