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________________ हिंसा की जड़ मूल और पत्र ये पेड़ के दो अंग हैं। इनके आधार पर हमारी मानसिक वत्तियों को समझने का प्रयत्न किया गया। जड़ वह होती है जहां से सारा विकास होता है। पत्ता वृक्ष का एक विकास है। वह स्थायी तत्त्व नहीं है । पत्ता आता है और चला जाता है। वसंत आता है, पत्ते आ जाते हैं। पतझड़ आता है, पत्ते चले जाते हैं। किन्तु जड़ स्थायी रहती है । जब तक जड़ है, तब तक पेड़ है। जड़ समाप्त तो पेड़ समाप्त, पत्ते समाप्त और सब कुछ समाप्त । एक है जड़ की बात, और एक है पत्तों की बात । पत्तों की बात बहुत छोटी बात होती है। उसका बहुत ज्यादा मूल्य नहीं होता। जड़ की बात का बहुत बड़ा मूल्य होता है। इसलिए आदमी हर विषय में खोजता है कि इसकी जड़ कहां है ? इसका मूल आधार क्या है। जब तक मूल का पता नहीं चलता, आदमी को संतोष नहीं होता । हिंसा के बारे में भी आगे यह प्रश्न पूछा जा रहा है और इस पर काफी चितन चल रहा है कि हिंसा का मूल क्या है ? हिंसा की जड़ क्या है ? उस जड़ को हमें पकड़ना है। हमारे सामने भी प्रश्न है कि हिंसा की जड़ कहां है ? इस पर अनेक लोगों ने अनेक विचार प्रकट किए हैं। विभिन्न मत : विभिन्न दृष्टिकोण विज्ञान की एक शाखा है आनुवंशिकी विज्ञान । आनुवंशिक वैज्ञानिक बतलाते हैं--हमारे सारे व्यक्तित्व का निर्माण जीन के द्वारा होता है। वे हमारे संस्कार-सूत्र हैं और उनके द्वारा सारा निर्धारण होता है । हिंसा की जड़ है-जीन । जीन आनुवंशिक है। वह माता-पिता के द्वारा प्राप्त होने वाला है। इसलिए उसमें हमारा कोई वश नहीं । अनुवंश से प्राप्त, विरासत में प्राप्त संस्कार है । इसलिए मनुष्य जाति को हिंसा को भोगना है और हिंसा के परिणामों को भोगना है। उसे छोड़ने का कोई उपाय नहीं है। यह मत है आनुवंशिकी वैज्ञानिकों का। जीव वैज्ञानिक इससे सहमत नहीं है । वे हिंसा की जड़ कहीं दूसरी जगह खोजते हैं। मनोवैज्ञानिक भी इससे सहमत नहीं हैं। रासायनिक वैज्ञानिकों का और मनोवैज्ञानिकों का मत है कि हिंसा की जड़ मौलिक मनोवृत्ति है । मनोविज्ञान में मोलिक वृत्तियों के अनेक वर्गीकरण हैं। उनमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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