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________________ ७५ सार्वभौम अहिंसा केन्द्र निर्धारित करता रहे और प्रोजेक्ट रिपोर्टों को प्रकाशित करता रहे। एक आशु सेवा इस संस्था द्वारा यह की जानी चाहिए कि यह प्रमुख समर्पित अहिंसा कार्यकर्ताओं के विचारों की अभिव्यक्ति, उनकी यात्रा, विश्राम और उनसे परामर्श का बन्दोबस्त करती रहे। यह सेवा दूसरे क्षेत्रों, जैसेसरकारी उपक्रमों, व्यापार, विश्वविद्यालयों और सेना में भी की जाए तो उसके अनेक लाभ होंगे। इसी से सम्बद्ध कार्यक्रम यह हो सकता है कि समयसमय पर सम्मेलनों का आयोजन किया जाये ताकि क्षेत्र में काम करने वाले शिक्षकों और शोध कार्यकर्ताओं को एक सार्वभौम अहिंसावादी सेवा समुदाय का गठन करने में सहायता मिल सके । विकास प्रक्रिया _ इस संस्था को बड़ी विनम्रता के साथ, परन्तु निरन्तर इस प्रक्रिया से आगे बढ़ना चाहिए कि जागरूक प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति इस विश्व को हिंसा से अहिंसा में बदलने के लिए संस्थागत क्षमताओं को अजित कर सके। इस ओर प्रथम प्रयास या सोपान यह हो कि रचनात्मक संस्थाओं के निर्माताओं और अहिंसावादी सेवा भावी नेताओं की एक छोटी मीटिंग आयोजित की जानी चाहिए, ताकि वे इस निबन्ध में वर्णित संस्थागत विकास के प्रस्तावों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कर सकें। यदि इसमें सफलता मिले तो अहिंसावादी निःस्वार्थी नेताओं, शिक्षकों और शोधकर्ताओं के बीच विश्व-स्तर का सम्मेलन आयोजित किया जाना चाहिए, ताकि समस्या समाधान के सार्वभौम अहिंसक संसाधनों को प्रकाश में लाया जा सके। तत्पश्चात् एक ऐसी भी योजना और उसके समर्थक तैयार किये जाने चाहिए कि इस संस्था का आगे आने वाली शताब्दियों में मानव-कल्याण में बहुत बड़ा योगदान हो सके। एक भी मानवोपकारी शान्ति, न्याय और स्वतन्त्रता के क्षेत्रों में किये गये प्रयासों के रेकार्ड पर विशेष एवं अमिट छाप छोड़ सकता है या उनका संघ इस कार्य कर सकता है। दूसरी ओर समस्त पृथ्वी के लाखों नागरिकों से भी इस दिशा में छोटे-छोटे परन्तु महत्त्वपूर्ण योगदान मिल सकते हैं । इस प्रकार के योगदान के स्रोत अधिक हों या कम, सार्वजनिक हों या निजी, बड़े हों या छोटे, इस संस्था को सभी मनुष्यों की आवश्यकताओं की सार्वभौम अहिंसा परिवर्तन के ज्ञान के माध्यम से पूर्ति करने में समर्पित हो जाना चाहिए। अहिंसक भविष्य की ओर ___ वर्तमान हिंसावादी मान्यताओं और संस्थाओं को अहिंसावादी बनाने में बड़े सशक्त प्रयासों की आवश्यकता है। किन्तु इस ओर हमारे प्रयास ऐसे होने चाहिए कि इस परिवर्तन से सारा विश्व लाभान्वित हो सके । यदि अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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