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________________ सार्वभौम अहिंसा केन्द्र ___ वर्तमान युग में मानव के समक्ष सबसे बड़ा कार्य मानव को हिंसा के प्रति उसकी प्रतिबद्धताओं से मुक्त करना है, जो अनेक रूपों में उसके अस्तित्व मात्र के लिए खतरा उत्पन्न कर रही हैं । ये प्रतिबद्धतायें बहुत थोड़ी हैं और एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। हिंसा के प्रति हानिप्रद आदतन प्रतिबद्धता प्रथम प्रतिबद्धता शारीरिक सुरक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से धमकी और संहारक शक्ति के प्रयोग के प्रति है। इसके परिणामस्वरूप वर्तमान शताब्दी में घनी मारकाट, आणविक सर्वनाश की धमकी और मानवीय एवं भौतिक संसाधनों के 'भारी अपव्यय' का बोलबाला है। द्वितीय प्रतिबद्धता आन्तरिक अथवा बाह्य प्रतियोगिता में चाहे वह पंजीवादी हो या समाजवादी, स्वामित्व और उत्पादन की अर्थव्यवस्थाओं की स्थापना एवं उन्हें बनाये रखने के लिए प्राणघातक शक्ति के प्रयोग करने की है । इसके परिणामस्वरूप हिंसा पर आधारित असमतावादी सार्वभौम अर्थव्यवस्था का जन्म हुआ है, जिससे प्रतिदिन इतनी भारी मात्रा में मृत्यु एवं उत्पीड़न हो रहा है कि तरेपन नोबल पुरस्कार विजेताओं ने इसे 'भूख एवं अल्प विकास के विध्वंस' की संज्ञा देकर गहन दुःख प्रकट किया है। तृतीय प्रतिबद्धता धमकी, उत्पीड़न और अत्याचार के प्रति है, जिनके सहारे चिन्तन, सामाजिक नाते-रिश्तों और कार्यों में अवांछनीय प्रवृत्तियों को दबाया जाता है। ऐसा करना मानवाधिकारों का भयावह उल्लंघन और हिंसक प्रतिशोध का अनवरत चलता कुचक्र है । पहिचान, सम्मान, सृजनात्मक अभिव्यक्ति एवं भौतिक निर्वाह के लिए मानवीय आवश्यकताओं के प्रति हिंसक दमन एवं सहानुभूति के अभाव की कीमत अनुमान से परे है। चौथी प्रतिबद्धता जीव-मण्डल पर आधिपत्य स्थापित करने तथा हिंसा प्रधान विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से, जो सामरिक क्षमताओं में अनन्त-वृद्धि की ओर अभिमुख है, इसके (जीव-मण्डल के) समस्त संसाधनों का शोषण करने के प्रति है । ये क्षमतायें अब भूमि, सागर और वायु तक सीमित न रहकर अन्तरिक्ष पार भी पहुंच गई हैं । मानव-विनाश की तैयारी का सम्बन्ध पृथ्वी ग्रह पर उपलब्ध जीवनाधार क्षमताओं के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष विनाश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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