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अहिंसा : ब्यक्ति और समाज
बात क्यों सोची जाती। अंतिम शरण युद्ध नहीं, युद्ध-विराम है। ये अंतिम शरण आदिम शरण बनें, इसके लिए आवश्यक है युद्ध को विराम देने के स्थान पर युद्ध के प्रारम्भ को ही विराम मिले । कुछ लोग मानते हैं कि अहिंसा आदमी को कायर बनाती है, भयभीत बनाती है। मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि यदि अहिंसा कायरता है तो अन्त में उसकी शरण क्यों ली जाती है ? क्या कायरता किसी की शरण बन सकती है। महावीर ने भय और कायरता को हिंसा माना है । अहिंसा कायरों का नहीं, वीरों का हथियार है। शौर्य वती और वीर्यवती अहिंसा ही समूचे संसार को त्राण और शरण दे सकती है। काश ! संसार उसकी क्षमता को पहचाने और उसे आदिम शरण के रूप में स्वीकार करे। प्रशिक्षण की पद्धति शिक्षा के साथ जुड़ __अहिंसा के प्रशिक्षण हेतु ऊपर निर्दिष्ट कुछ बिंदुओं को ही चुना गया है, क्योंकि हिंसा के तीन मुख्य कारण हैं
० वैचारिक अभिनिवेश, • पदार्थ के प्रति आसक्ति, ० मानवीय संबंधों में क्रूरता ।
मनुष्य के दैनंदिन जीवन में इन बिन्दुओं से संबंधित जो प्रसंग उपस्थित होते हैं, उन्हें टालने का कार्यकारी उपाय एक ही है कि मनुष्य को प्रशिक्षित कर दिया जाए । बहुत बार ऐसा भी होता है कि व्यक्ति अज्ञानवश हिंसा में प्रवृत्त हो जाता है । हिंसा के परिणामों से परिचित न होने के कारण भी ऐसा हो सकता है। इसलिए अहिंसा के प्रशिक्षण की प्रक्रिया को काफी सघन बनाना अपेक्षित है। कुछ व्यक्तियों अथवा गांवों को चुनकर प्रयोग करना ही पर्याप्त नहीं है। परीक्षण के तौर पर ऐसा किया जा सकता है, पर प्रशिक्षण कार्यक्रम को व्यापक बनाने के लिए इसे शिक्षा के साथ नत्थी करना होगा।
जितने भी विद्यालय और महाविद्यालय हैं, उनमें अहिंसा को अनिवार्य सब्जेक्ट के रूप में स्वीकार किया जाए और थ्योरिटिकल ट्रेनिंग के साथ प्रेक्टिकल ट्रेनिंग पर भी ध्यान केन्द्रित किया जाए तो इस विषय को और अधिक व्यापक बनाया जा सकता है ।
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