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________________ अहिंसा का प्रशिक्षण अहिंसा का प्राणतत्त्व क्या है ? इस प्रश्न का उत्तर यदि मुझे देना हो तो उत्तर होगा - हृदय परिवर्तन । हृदय परिवर्तन के बिना अहिंसा की कल्पना भी नहीं की जा सकती । हृदय परिवर्तन का पर्यायवाची शब्द हो सकता है भावात्मक परिवर्तन । हृदय हमारे शरीर का वह क्षेत्र है जहां भाव जन्म लेते हैं और वे शरीर, वाणी और मन को प्रभावित करते हैं । आयुर्वेद के अनुसार हृदय दो हैं । एक फुफ्फुस के नीचे और दूसरा मस्तिष्क में । प्रेक्षा ध्यान की पद्धति के अनुसार मस्तिष्कीय हृदय की पहचान अवचेतक (हाइपोथेलेमस) से की गई है । वह भावधारा का उद्गम स्रोत है। वहां भाव जन्म लेते हैं और अभिव्यक्त होते हैं । शरीर-विज्ञान के अनुसार अन्तःस्रावी ग्रन्थियां मनुष्य के व्यवहारों और आचरणों को प्रभावित करती हैं । उन ग्रंथियों में मुख्य ग्रन्थि है पीयूष गन्थि । उसका नियामक है अवचेतक (हाईपोथेलेमस) । हिंसा की उपज के सन्दर्भ अनेक हैं—जातीय और रंग भेद की समस्या असंतुलित समाज व्यवस्था असंतुलित राजनैतिक व्यवस्था शस्त्रीकरण की समस्या सांप्रदायिक समस्या मानवीय संबंधों में असंतुलन आर्थिक स्पर्धा और अभाव मानसिक तनाव वैचारिक मतभेद भावात्मक असंतुलन व्यक्तिगत रासायनिक असंतुलन इनमें प्रथम सात संदर्भ वस्तु जगत् ( आब्जेक्ट) से संबंध रखते हैं । अन्तिम चार संदर्भ अन्तर्जगत् (सब्जेक्ट) से संबंध रखते हैं । अहिंसा प्रशिक्षण की प्रणाली पर विचार करते समय इन दोनों संदर्भों पर ध्यान देना आवश्यक है । किसी एक ही तत्त्व से हिंसा की समस्त समस्याओं का समाधान हो जाये इसमें हमारा विश्वास नहीं है, सब रोगों की एक दवा वाली कहावत हमारी दृष्टि में बहुत सार्थक नहीं है । वस्तु जगत् से सम्बन्ध रखने वाली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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