________________
अहिंसा : व्यक्ति और समाज
के लिए चाहे जितना नुकसान सहन करते हैं । मत्सर के बारे में भी यही कहा जा सकता है।
संकट देखकर भाग जाना और अपनी जान बचाना कुदरत का कानून है। बड़े-बड़े हाथी, शेर और सिंह भी जब तक अपने मन में डर पैदा नहीं होता, तभी तक लड़ते हैं। लेकिन आत्मविश्वास, विजय का निश्वास, नष्ट होते ही दुम दबाकर ऐसे बेतहाशा भागते हैं कि उन्हें कोई रोक नहीं सकता। मृत्यु से न डरना एक परमहंस के लिए भले ही संभव हो परन्तु सामान्य मनुष्य के लिए यह बात असंभव हो तो आज हम देखते हैं कि मुट्ठी भर या हजार दो हजार लोग भी नहीं, किसी भी जाति के लोग भी नहों, किंतु तमाम दुनियां भर के सामान्य लोग आग बुझाने के प्रयत्न में होने आदि सांसर्गिक रोगों के दौरे के वक्त मरीजों की सेवा करने में और युद्ध में एक दूसरे का खून करते समय अपनी जान की बिलकुल परवाह नहीं करते। तोप के गोले के सामने तोपखाने पर कब्जा करनेवाले बहादुर सिपाही सामान्य मनुष्य जाति के ही प्रतिनिधि होते हैं। वे कोई असाधारण औलिया नहीं होते।
अगर मुझे कोई गालियां दे, तो जवाब में मैं उसे गालियां न दे दूं, यह कैसे हो सकता है ? क्या मैं अपने मन को धोये बिना कायर की तरह बैठ सकता हूं? हर्गिज नहीं । किसी ने गाली दी तो मैं उसे ऐसा जवाब दूंगा कि जिंदगी भर याद करता रहे। असंस्कारी और कमीने लोग ऊपर की तरफ रहते हैं और करते भी हैं । लेकिन दुनिया भर के सामान्य सज्जन कहते हैं कि गाली का जवाब गाली से देने से प्रतिपक्षी को नुकसान होगा या नहीं, हम नहीं जानते ? किंतु हमारी जबान तो भ्रष्ट हो ही जाएगी । गालियां देने वाले का हलाल हम जरूर करेंगे, किन्तु ऐसे हीन रास्ते से नहीं, जिसमें हमारा ही अधःपात हो।
अहिंसावादी भी कहते हैं कि हम अत्याचारी का अत्याचार थोड़े ही बर्दाश्त करने वाले हैं ? उसका हम ऐसा इलाज करेंगे कि फिर वह अत्याचार का नाम ही न ले । लेकिन वह इलाज उसका अनुकरण करके नहीं, किंतु ऐसे ढंग से करेंगे जिससे उसे अपने जीवन के प्रति शर्म आ जाये और वह अपना स्वभाव ही भूल जाये।
तब स्वचक्र अथवा परचक्र के अवसर पर मनुष्य का प्रतिपक्षी को मारने के बदले उसके सामने निडर खड़े होना और बिना आक्रमण किए मरने के लिए तैयार होना असंभव क्यों माना जाता है ?
जिन सिपाहियों ने फौजी तालीम पाई, उन पर चाहे पत्थरों और गोलियों की बौछार क्यों न होती रहे, मगर जब तक सेनापति से लड़ने का आदेश नहीं मिलता, तब तक वे चुपचाप सब कुछ सहते रहते हैं । न वे भागते हैं, न हाथ उठाते हैं, डटे रहकर मार खाते रहते हैं और मर मिटते हैं। वे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org