SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कान्ति और अहिंसा ३३ जरूरी है । उस भूमिका की दृष्टि से मैं सबसे पहला स्थान अहिंसा के प्रशिक्षण को दूंगा । निष्ठा की बात भी प्रशिक्षण के अभाव में चल नहीं सकती । किसी भी समस्या के समाधान में हिंसा और अहिंसा दोनों साधन सदा से प्रयोग में आते रहे हैं । किन्तु प्रश्न यहां पर परम्परा का है । रूस और अमरीका दोनों देश आणविक युद्ध में सक्षम हैं । फिर भी वे निरन्तर इस युद्ध को टालने का प्रयत्न करते हैं । आखिर क्यों ? इसीलिए कि इससे एक नयी परम्परा का जन्म होता है, जिसका भविष्य बिलकुल धुंधला है । ffer अपने आप स्वस्थ विचार है । किन्तु उसकी परम्परा तब तक नहीं बन सकती जब तक उसका सफल प्रयोग - परीक्षण न हो । उस प्रयोगपरीक्षण की पूर्व तैयारी में अहिंसा का प्रशिक्षण सबसे बुनियादी कार्य है । अहिंसात्मक प्रतिरोध के विचार में हमें कुछ मान्यताएं या निश्चित सूत्र भी स्थिर करने होंगे । इसके लिए सबसे पहले देश, काल और परिस्थितियों का ज्ञान होना आवश्यक है । परिस्थितियों को देखते हुए किस कार्य को किस रूप में हाथ में लिया जाए, किस रूप से उसका संचालन किया जाए, इन सबके विवेक के बिना यह कार्य आगे नहीं बढ़ सकता । गांधीजी अपने सत्याग्रह आन्दोलन में अनेक मोड़ लिया करते थे । कभी वे आन्दोलन को तेज करते, कभी मंद करते और कभी स्थगित भी कर देते । इनके पीछे एक ही कारण था - देश, काल और परिस्थितियों का संतुलन बनाये रखना । दूसरे, निर्णय में विवेक-जागरण के साथ-साथ निर्णेता का तटस्थ और विनम्र दृष्टिकोण होना नितान्त आवश्यक है । तटस्थता और विनम्रता अहिंसात्मक प्रतिरोध के आधार स्तम्भ हैं। किसी भी विचार के प्रति पूर्वाग्रह और अहंभाव उनमें निभ नहीं सकते । पक्ष - विशेष में बंधकर प्रतिरोध की बात करना स्वयं हिंसा है । तीसरे, इसमें दृष्टिकोण और प्रवृत्ति की विशुद्धता का होना afrवार्य है । किसी एक के प्रति सद्भाव और दूसरे के प्रति दुर्भाव या दूसरे को हानि पहुंचाकर भी अपनी बात का समर्थन इसमें नहीं होना चाहिए । दुर्भाव, बल-योग और बाध्यता - ये साधन स्वयं हिंसा से संपृक्त हैं । किसी भी विचार या पक्ष के विरोध में प्रतिरोध होते हुए भी अहिंसा यह अनुमति नहीं देती कि हमारे दिलों में विरोधी के प्रति दुर्भाव या घृणा के भाव हों । भारत-चीन युद्ध के संदर्भ में स्वर्गीय पंडित नेहरू ने यही कहा था - 'स्थितिवश हमें चीनियों के साथ लड़ना पड़ रहा है तो हम लड़ेंगे । किन्तु हमारे दिलों में उनके प्रति दुर्भाव या घृणा के भाव नहीं होने चाहिए ।' मानवीय समता, एकता, स्वतंत्रता और सह-अस्तित्व की अनुभूति में से ही अहिंसा प्रसूत होती है । इसके बाद अहिंसात्मक प्रतिरोध का करणीय पक्ष हमारे समक्ष आता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy