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________________ अहिंसा की शक्ति क्या दुनिया में और क्या भारत में, हमेशा सन्त, सत्पुरुष हुए हैं और उन्होंने लोगों को आध्यात्मिक मूल्य समझाये हैं। लोग सुनते आये, जितना समझ सके, समझते गये; जितना अमल कर सकते थे, उतना अमल करते आये और अमल न हो सका तो इसे अपनी लाचारी मानकर मूल्यों का आदर करते आये । यह मानते रहे कि व्यवहार में यह नहीं चलेगा। लेकिन जब युग की मांग और संतों के उपदेश का संयोग होता है, तब क्रांति होती है। गांधीजी के बारे में हमें यह देखने को मिला। गांधीजी ने कहा, हिंसा का प्रतीकार अहिंसा से करो, असत्य का प्रतीकार सत्य से करो। उन्होंने निःशस्त्र प्रतीकार करना सिखाया। यों तो यह पुरानी बात है, कोई नयी नहीं। यह तो हिन्दुस्तान की संस्कृति का ही फूला-फला स्वरूप है। भगवान बुद्ध, महावीर और अनेक संतों ने हमें यही सिखाया । लेकिन जब गांधीजी की जबान पर यह बात आयी, तो उसका क्रांतिकारी अर्थ प्रकट हुआ, क्योंकि उसके लिए ऐतिहासिक भूमिको थी। एक ज्वलन्त ऐतिहासिक भूमिका __ पहले के जमाने में हिन्दुस्तान में शस्त्र थे। यह नहीं कि सबके हाथ में थे, लेकिन सबको शस्त्र रखने की छूट थी। ब्राह्मण भी चाहे तो शस्त्र रख सकते थे । लेकिन भारत ने अहिंसा का एक प्रयोग किया कि शस्त्र सीमित रहें । शस्त्रों की जरूरत तो पड़ती है, उस हालत में क्या करें? तब यह निश्चय किया कि सबके नहीं, केवल एक वर्ग के हाथ में शस्त्र रहें, बाकी सब लोग शस्त्र छोड़ दें। ऐसा एक प्रयोग भारत ने किया। परिणाम यह हुआ कि अहिंसा का विचार भारत में पैठ गया। फिर भी 'शस्त्र द्वारा रक्षण' की बात तो कायम रही और उतने अंशों में अहिंसा दुर्बल ही रही। लेकिन अंग्रेजों ने आकर एक बेजोड़ काम किया, जैसा पहले किसी ने नहीं किया था। अंग्रेजों ने शस्त्र छीन लिये और हिन्दुस्तान की जनता को बिलकुल निःशस्त्र बना दिया। ऐसा पहले किसी भी राजा ने कहीं नहीं किया था। इसका एक कारण तो यह था कि किसी भी राजा में इतनी ताकत नहीं थी। दूसरा कारण, प्रजा को एक बार निःशस्त्र करने पर कहीं बाहर से आक्रमण हो जाए तो उसके रक्षण की जवाबदारी अकेले राजकर्ता पर आ पड़ती है । ऐसी ताकत उनमें नहीं थी, इसलिए अब तक किसी ने जनता को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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