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________________ अहिंसा ही विकल्प है धधकती? क्या इतिहास इस बात का साक्षी नहीं है ? और क्या इतिहास में ही ऐसे उदाहरण नहीं मिलते कि अहिंसा की पराकाष्ठा को पहुंच जाने वालों ने बड़े-बड़े विकराल पशुओं को अपने वश में कर लिया है ? पर इस पराकाष्ठा की अहिंसा को जाने दें। इसके लिए तो यहां शूरवीर योद्धा से भी अधिक बहादुरी की जरूरत है। और जिसके प्रति आपके मन में तिरस्कार हो उसके साथ लड़कर मर जाने के डर से बैठे रहने की अपेक्षा तो लड़ लेना अच्छा है । कायरता और बन्धुत्व परस्पर विरोधी हैं। संसार शत्रु के साथ प्रीति करने की बात को स्वीकार नहीं करता। ईसा के अनुयायी युरोप में भी अहिंसा के सिद्धांत का मजाक उड़ाया जाता है।... ''यह मुझे कहना होगा कि यदि शत्रु को चाहने का सिद्धांत स्वीकार न करें तो बन्धुत्व की बात करना हवा में महल बनाना है।.... हमें अपने मनुष्यत्व का पूरा भान नहीं इसलिए वैर नहीं छोड़ा जाता। डार्विन कहता है-- हम बन्दर के वंशज हैं । यदि यह सच हो तो हम अभी मनुष्य की दशा को प्राप्त नहीं कर पाये हैं । एना किंग्सफर्ड ने लिखा है कि मैंने पेरिस में मनुष्य के रूप में हिंस्र शेर, भालू और सांप विचरते हुए देखा है । इस पशुत्व को मिटाने के लिए मनुष्य को भय छोड़ने की आवश्यकता है। इस भय को अपने अन्दर बल उत्पन्न करके दूर किया जा सकता है, हथियार से सज्जित होकर नहीं। महाभारत ने वीर का भूषण वा गुण क्षमा बताया है । जनरल गार्डन की एक मूर्ति है। उसकी वीरता बताने के लिए उसके हाथ में तलवार नहीं, एक छड़ी दिखाई गई है। यदि मैं शिल्पकार होता और गार्डन की मूर्ति बनाता तो मैं उन्हें शिष्टता के साथ सीना ताने हुए खड़ा और यह कहते हुए बनाता-चाहे जितने भी प्रहार करो, बिना भय एवं वैर के उन्हें झेलने के लिए यह सीना खुला हुआ है। यह है मेरे वीर का आदर्श । ऐसे वीर जगत् में अमर हुए हैं । ईसाई धर्म ने भी ऐसे शूरवीरों को जन्म दिया है, हिन्दू धर्म और इस्लाम ने भी दिया है। जातियों के निर्वैर हो जाने के भी उदाहरण हैं । क्वेकर तथा टालस्टॉय-वणित दुखो बोर का इतिहास क्या यही नहीं कहता? निर्वैर हो सकते हैं युरोप तथा भारत के कितने ही बड़े-बड़े लेखक कहते हैं कि मनुष्य जाति निर्वैर हो जाए, ऐसा समय कभी नहीं आ सकता। इसी बात पर मेरा विवाद है । मैं तो उलटा यह कहता हूं कि जब तक मनुष्य निर्वैर नहीं होता तब तक वह मनुष्य ही नहीं बन सकता। हम चाहें या न चाहें, हमें इसी रास्ते में जाना होगा और आज मैं आप से यह कहने आया हूं कि लाचार होकर इस रास्ते जाने की अपेक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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