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अहिंसा प्रकाश है पाल रहा है अंधकार को। वह चाहता है शान्ति और उपाय खोज रहा है अशान्ति के । वह बात करता है अहिंसा की और अपनी शक्ति लगा रहा है शस्त्र-निर्माण में । शस्त्रों में परम्परा होती है। कोई भी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र शस्त्र-निर्माण करेगा तो उसका पड़ोसी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र भी उस प्रतिस्पर्धा में कूदना चाहेगा। जबकि शस्त्रों के अनियंत्रित एवं अविवेकपूर्ण प्रयोग से होने वाले खतरों की चिन्ता सबको है। इन विसंगतियों से निबटने के लिए शस्त्र की ओर नहीं, उस चेतना की ओर ध्यान देना होगा जो शस्त्र को बनाती है। मनुष्य की चेतना और चिन्तन से शस्त्र की बात निकल जाएगी, तभी अहिंसा को निर्बाध रूप से काम करने का अवसर प्राप्त होगा।
मनुष्य को काम करना है तो सबसे पहले उसे सक्षम बनना होगा। अहिंसा की क्षमता अहिंसा में निष्ठा रखने वालों की क्षमता पर भी निर्भर है । हिंसक व्यक्ति हिंसा के प्रति जितने निष्ठाशील हैं, क्या अहिंसक व्यक्तियों में अहिंसा के प्रति उतनी निष्ठा है ? निष्ठा के अभाव में अहिंसा का रास्ता अपना भी लिया तो क्या होगा? अहिंसा के प्रति गहरी निष्ठा है तो फिर किसी भी स्थिति में हिंसा का विकल्प उठ नहीं सकेगा।
अहिंसा एक अखण्ड सत्य है। उसे टुकड़ों में बांटा नहीं जा सकता। एशिया, यूरोप और अमेरिका की अहिंसा अलग-अलग नहीं हो सकती। यदि हम चाहते हैं कि अहिंसा अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में प्रभावशाली बने तो उसके लिए तीन काम करने होंगे-शोध, प्रशिक्षण और प्रयोग । अहिंसक शक्तियां संगठित होकर अहिंसा के क्षेत्र में रिसर्च करें, अहिंसा-प्रधान जीवन शैली का प्रशिक्षण दें और हिंसा के मुकाबले में अहिंसा का प्रयोग करें तो निश्चित रूप से अहिंसा का वर्चस्व स्थापित हो सकता है।
हमारी आखिरी मंजिल अहिंसा है। हम इस दिशा में एक-एक कदम ही आगे बढ़ाते रहें तो हमें अहिंसा मां का संपूर्ण संरक्षण उपलब्ध हो सकता है। माटी का एक दीया भी अंधकार की सघनता को भेदने में सक्षम है। इसी प्रकार अहिंसा की दिशा में उठा हुआ एक-एक पग भी मंजिल तक पहुंचने में कामयाबी दे सकेगा।
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