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अहिंसा प्रकाश है
अहिंसा प्रकाश है, हिंसा अंधकार है । अहिंसा सत् है, हिंसा असत् है । अहिंसा अमृत है, हिंसा मृत्यु है । अहिंसा करुणा है, हिंसा घृणा है । अहिंसा सह-अस्तित्व है, हिंसा अलगाववादिता है । अहिंसा समता है, हिंसा क्रूरता है। अहिंसा अदृष्ट है, हिंसा दृष्ट है। अदृष्ट में जो आनन्द मिलता है, वह दृष्ट में नहीं मिल सकता। अहिंसा में जो सुख-चैन निहित है, वह हिंसा में नहीं हो सकता । यह शाश्वत सत्य है। तीर्थंकरों ने इस सत्य का संगान किया है। जो लोग इस संगान को सुनकर भी अनसुना कर देते हैं, वे सुख-शान्ति का रास्ता नहीं खोज सकते।
___ आयुर्वेद के ग्रन्थों में लिखा है-मनुष्य के लिए हरीतकी माता की तरह हितकारक है । कभी ऐसा प्रसंग आ सकता है कि माता कुपित होकर अपनी सन्तान का अनिष्ट कर दे, पर हरीतकी पेट में जाकर कभी नुकसान नहीं प*चाती। इस प्रतीक को अहिंसा के साथ घटित किया जा सकता है-मनुष्य के लिए अहिंसा माता की तरह हितसाधक है। मां कभी अपनी संतान का अहित कर सकती है, किन्तु अहिंसा का पालन किया जाए तो वह कभी अहितकारक नहीं हो सकती । अहिंसा हमारी मां है । हमने भूल यह की कि अहिंसा का सम्मान करना नहीं सीखा । अहिंसा ही एकमात्र रास्ता है सुख-शान्ति का । पर हमने उसका भी विकल्प खोजना शुरू कर दिया । राजनैतिक पार्टियां आज नेतृत्व का विकल्प ढूढ़ रही हैं। उन्हें विकल्प मिल सकता है, पर अहिंसा का कोई विकल्प नहीं है । यदि संसार को शान्ति से रहना है तो उसे अहिंसा की शरण में जाना ही होगा।
अहिंसा सार्वकालिक और सार्वभौमिक उपाय है। इसके द्वारा कठिन से कठिन समस्या का समाधान हो सकता है । अभी २६ जुलाई १९८७ को कोलम्बो में भारत के प्रधान मंत्री राजीव गांधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति जयवर्धने के बीच हुआ सगझौता इसकी जीती-जागती मिसाल है। तमिलों और सिंहलियों के मध्य चार वर्षों से चल रहे हिंसात्मक विवाद का अहिंसात्मक हल इस बात का साक्षी है कि अहिंसा का कोई विकल्प नहीं है और हिंसापूर्ण उपायों की निष्फलता अनिवार्य है। ऐसे प्रसंगों पर प्रारम्भ से ही अहिंसात्मक नजरिया काम में लिया जाए तो हिंसा को कभी खुलकर खेलने का मौका नहीं मिल सकता।
__ मनुष्य विसंगतियों का जीवन जीता है । वह चाहता है प्रकाश और
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