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अहिंसा : व्यक्ति और समाज
अतीताननुसंधानं भविष्यदविचारणम् ।।
औदासीन्यमपि प्राप्ते, जीवनमुक्तस्य लक्षणम् ॥ संग्रह मानवीय एकता और सहअस्तित्व की चेतना पर पहला आवरण है । इस आवरण को उतारे बिना संघर्ष से बचाव संभव नहीं लगता। युद्ध का स्थायी समाधान क्या
युद्ध दो पक्षों में होता है । एक पक्ष आक्रान्ता होता है और दूसरे पक्ष को अपनी सुरक्षा के लिए युद्ध लड़ना पड़ता है। मानवीय एकता का विघटन, स्वतन्त्रता का हनन, सत्ता, अर्थ एवं भूमि का केन्द्रीकरण तथा ऐसे ही कुछ अन्य कारणों से युद्ध की परिस्थिति पैदा होती है। आदर्शों के लिए भी लड़ाइयां होती हैं । भारत-पाक संघर्ष के दौरान श्रीमती इन्दिरा गांधी ने कहा-'हम लड़ाई नहीं चाहते, अपने सिद्धान्तों और आदर्शों की रक्षा चाहते हैं । सिद्धांतों की रक्षा के लिए हमें मजबूरन लड़ना पड़ रहा है।' श्रीमती इन्दिरा गांधी ने जैसा कहा था, वैसा प्रमाणित भी कर दिया। मजबूरी मिटते ही उन्होंने युद्ध विराम की घोषणा कर दी। इस घोषणा पर पाकिस्तान की सहमति मिली और युद्ध समाप्त हो गया।
युद्ध के इस सामयिक समाधान को स्थायी रूप तभी मिल सकता है जब सत्ता, पूंजी और भूमि का विकेन्द्रीकरण हो, मानवीय एकता और सहअस्तित्व की नीति का परिस्फुरण हो तथा किसी भी देश की स्वतन्त्रता और अखण्डता में हस्तक्षेप न किया जाए । अणुव्रत की भावना विश्व-शान्ति की दिशा में ठोस कार्य है । इसके द्वारा राजनीति, अर्थनीति और समाजनीति में परिष्कार किया जा सकता है । जो व्यक्ति अणुव्रत की भावना तक पहुंचे हैं, उनकी दष्टि में अणुव्रत के फलित हैं
० मानवीय एकता का विकास ० सहअस्तित्व की भावना का विकास ० व्यवहार में प्रामाणिकता का विकास ० आत्मनिरीक्षण की पद्धति का विकास ० समाज में सही मानदण्डों का विकास
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