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अर्थतंत्र और नैतिकता
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से करा सकता है । सामाजिक संगठन से मुकाबले की क्षमता बढ़ती है और एक सीमा तक सुविधा भी रहती है ।
अणुव्रत संवाहक की एक योजना और थी जो अणुव्रत समाज-रचना की पुष्टि के लिए ही थी । इसका सम्बन्ध उन कार्यकर्ताओं से है जो अपना जीवन नैतिक आन्दोलन को गतिशीलता बनाये रखने में लगाने के लिए तत्पर हों । वे अपने पारिवारिक दायित्व से मुक्त रहकर काम करें और उनकी समस्या का हल समाज करे । इस प्रकार की और भी दूसरी योजनाएं अणुव्रत के मंच से प्रस्तुत की जा सकती हैं, पर उनकी क्रियान्विति में समाज के पर्याप्त सहयोग की अपेक्षा को नकारा नहीं जा सकता ।
नैतिक मूल्यों को प्रतिष्ठित करने का प्रयत्न
अंधकार में ही प्रकाश की अपेक्षा होती है । सहस्रांशु सूर्य तेज से दीप्त रहे और कोई व्यक्ति विद्युत् के प्रकाश का उपयोग करे, यह उसकी समझदारी नहीं हो सकती । प्यास ही न हो तो पानी का क्या उपयोग है ? अर्थशास्त्र में उपयोगिता के नियम को स्पष्ट करते हुए समझाया गया है कि एक प्यासा व्यक्ति चार गिलास पानी पी लेता है। इन चारों गिलासों में पहले गिलास का जो मूल्य है, वह शेष तीन का नहीं है, क्योंकि एक गिलास पानी पीने के बाद प्यास उतनी तीव्र नहीं रहती । तीव्रता के अभाव में उत्तरोत्तर हर गिलास की उपयोगिता कम हो जाती है और एक समय ऐसा भी आता है जब पानी से भरा हुआ गिलास भी अकिंचित्कर हो जाता है ।
नैतिकता के बारे में इसी उपयोगितावाद की दृष्टि से चिंतन करना जरूरी है । जिस समय स्वार्थी मनोभाव अधिक प्रबल हो, परस्पर संघर्ष की विकट स्थिति निर्मित हो, उस समय नैतिक मूल्यों का प्रसार जितना उपयोगी है, सामान्य स्थिति में वह उस रूप में उपयोगी नहीं होता। क्योंकि जिस समय मानवीय चेतना नैतिकता से संवलित हो, उसे नैतिक बनाने का उपदेश अकिचित्कर है ।
स्वार्थ और संघर्ष मनुष्य की मौलिक वृत्तियां हैं। ये वृत्तियां अधिक तीव्र होंगी तो नैतिकता की अपेक्षा भी उतनी ही तीव्रता से होगी । प्रतिपक्ष के बिना किसी भी स्थिति का अतिरिक्त मूल्य नहीं हो सकता ।
पिछले दशकों में अनैतिकता का प्रश्न तीव्र नहीं होता तो अणुव्रत आन्दोलन का अधिक मूल्य नहीं हो सकता था । हम किसी आन्दोलन का संचालन कर रहे हैं, ऐसा सोचकर अपना मनस्तोष अवश्य किया जा सकता था, पर वह युगीन आवश्यकता के रूप में उभरकर सामने नहीं आ सकता था । इसलिए हमें इस बात पर कभी नहीं अटकना चाहिए कि स्वार्थ और संघर्ष के वातावरण में नैतिकता की बात कौन सुनेगा ?
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