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________________ आवश्यकतओं पर नियंत्रण ही समाजवान की नींव है १८७ कब्जा करने का था। लगता है, उनका विश्वास था कि सत्ता का विकेन्द्रीकरण भी पहले सत्ता के वर्तमान केन्द्रों को जीतकर अपने कब्जे में कर लेने के उपरान्त ही संभव होगा, क्योंकि उस समय विकेन्द्रीकरण और संस्था-विघटन कानून बनाकर किया जा सकता है । लेकिन वे इस प्रक्रिया की निरर्थकता को समझ नहीं पाये । ऊपर से लोगों के हाथ में सत्ता बांटकर विकेन्द्रीकरण नहीं किया जा सकता, खास तौर से जब लोग राजनीतिक दृष्टि से बिल्कुल कुचल दिये गये हों और दल-प्रथा तथा सत्ता के केन्द्रीकरण के कारण स्व-शासन की जिनकी शक्ति, यदि नष्ट नहीं, तो सर्वथा छिन्न-भिन्न कर दी गयी हो। ___आज विधानसभा में बने हुए कानूनों के अनुसार ग्राम-पंचायतों का संगठन हो रहा है। ये सच्ची पंचायतें नहीं हैं । गांधीजी जिसे "ग्रामराज्य" कहते थे, वह ये नहीं हैं। गांधीजी के सारगर्भित शब्दों में "पंचायत अपने ही बनाये हुए कानूनों के अनुसार काम कर सकती है।" समाज के जीवन को आत्म-नियन्त्रित रखने की यह शक्ति पैदा की जानी चाहिए, विकेन्द्रीकरण के नाम पर ऊपर से बख्शी नहीं जानी चाहिए। इसकी प्रक्रिया नीचे से शुरू होनी चाहिये । स्वराज्य और आत्म-व्यवस्था के कार्यक्रम जनता के सामने रखे जायें और विधायक तथा निर्दलीय दृष्टि से उनकी सहायता की जाये, ताकि वे उन्हें व्यवहार में ला सकें । अब यह स्पष्ट हो गया है कि गांधीजी राष्ट्रीय पैमाने पर इस कार्यक्रम को चलाने की दृष्टि से ही कांग्रेस के एक निर्दलीय लोक-सेवक संघ में परिवर्तित करने की बात सोच रहे थे। ___ मैं राज्य की उत्तरोत्तर बढ़ती हुई प्रतिष्ठा को गहरी आशंका और भय की दृष्टि से देखता रहा हूं । साम्यवादी, गणतान्त्रिक समाजवादी तथा कल्याणवादी–फासिस्टों की तो कहें ही क्या--सब-के-सब राज्यवादी हैं। वे सब पहले हाथ में सत्ता लेकर, उसके बाद राज्य के अधिकारों और कार्यक्षेत्रों में वृद्धि करके अपने ढंग का सतयुग निर्माण करना चाहते हैं। बूर्जआ (भद्र लोगों के) राज्य का राजनीतिक सत्ता पर एकाधिकार था। समाजवादी राज्य में उसके साथ आर्थिक एकाधिकार के जुड़ने का भय रहता है। सत्ता के इतने बड़े केन्द्रीकरण को नियन्त्रित और संयमित रखने के लिए उससे अधिक नहीं, तो उतनी शक्ति तो चाहिए हो। समाजवादी समाज में इस प्रकार की कोई शक्ति और प्रभुता के आश्वासन की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए । आर्थिक और राजनीतिक अफसरशाही इतनी शक्तिशाली हो जायेगी और इतने महत्त्वपूर्ण सत्ता स्थान उसके हाथ में होंगे कि जनता की स्वतंत्रता और स्वाधिकार के साथ ही जनता की रोजी-रोटी भी सर्वथा उस अफसरशाही की दया पर निर्भर करेगी। इस खतरे से बचने का मुझे केवल एक ही उपाय मिला कि जहां तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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