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________________ समाजवादी व्यवस्था और हिंसा का अल्पीकरण आधुनिक विचारधारा एक सूत्र का प्रस्तुतीकरण करती है-जीवन के लिए संघर्ष अनिवार्य है । दूसरा सूत्र है--विकास के लिए इच्छा का आधिक्य अपेक्षित है । अधिक इच्छाएं और अधिक अपेक्षाएं पदार्थों की अधिकता का मुख्य हेतु हैं । वर्तमान की भाषा में कहा जा सकता है-संघर्ष और इच्छाविस्तार-इन दो सूत्रों के आधार पर जन-जीवन का ढांचा टिका हुआ है। पुरानी भाषा में इस तथ्य को इस प्रकार प्रतिपादित किया जा सकता हैहिंसा और परिग्रह जीवन के आधार हैं। अणुव्रत की विचार-सारिणी इससे भिन्न है । अणुव्रत का दर्शन भगवान् महावीर के ढाई हजार वर्ष प्राचीन चिंतन पर आधारित है। भगवान् महावीर ने कहा-संघर्ष जीवन का आधार नहीं है। जीवन का आधार है-अहिंसा, प्रेम, करुणा और मैत्री । यद्यपि इस बात को अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि जीवन में हिंसा करनी पड़ती है, किन्तु इस स्वीकृति और उस स्वीकृति में अन्तर है। आधार और अनिवार्यता दो भिन्न पहलू हैं । अणुव्रत विचारधारा के अनुसार हिंसा जीवन की अनिवार्यता हो सकती है, आधार नहीं । इसका फलित यह होता है कि शारीरिक स्तर पर हिंसा की अनिवार्यता प्राप्त है किन्तु मानसिक स्तर पर उसे समर्थन नहीं दिया जा सकता, क्योंकि वह जीवन का आधार नहीं है। वार्यता और अनिवार्यता के आधार पर हिंसा के तीन प्रकारों का उल्लेख मिलता है-आरंभजा, विरोधजा, संकल्पजा। आरम्भजा हिंसा कृषि आदि से सम्बन्धित हिंसा है। इसके बिना जीवनयापन में कठिनाई उपस्थित होती है, इसलिए इस हिंसा से उपरत होना कठिन बात है । विरोधजा हिंसा अस्तित्व-सुरक्षा के लिए होती है । आक्रान्ता आक्रमण करता है, यह हिंसा है। इससे अपना बचाव करना प्रतिहिंसा या विरोधजा हिंसा है। इसकी अपरिहार्यता इसलिए स्वीकार की जाती है कि कुछ मनचले व्यक्ति अपने असंतुलित मस्तिष्क से आक्रमण करते रहते हैं । उनके आक्रमण को विफल करने के लिए या अपने अस्तित्व की सुरक्षा के लिए हिंसा का क्षेत्र खुल जाता है । संकल्पजा हिंसा आक्रामक मनोभावों की निष्पत्ति है। इस हिंसा का न कोई प्रयोजन होता है और न कोई विशेष उद्देश्य । अहं-चेतना और प्रमाद-चेतना इसमें प्रेरक शक्ति है। जो लोग हिंसा को जीवन का आधार मानते हैं, उनका प्रति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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