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________________ अहिंसा : व्यक्ति और समाज जहां कहीं हो रहा है, उसका स्वर इतना मंद और क्षीण है कि हिंसा के नगाड़ों के बीच वह तूती की आवाज भी नहीं बन पा रहा है। अहिंसा की यह सबसे बड़ी समस्या है । हिंसा में मादकता है इसलिए वह संहारक होकर भी प्रिय बन रही है। अहिंसा एक वास्तविकता है फिर भी वह समाज के आकर्षण का विषय नहीं बन रही है। इस समस्या से निपटने के लिए अहिंसा में आस्थावान व्यक्तियों को कुछ नए ढंग से सोचने-करने की जरूरत है। महामात्य चाणक्य नंदवंश के उन्मूलन में लगा हुआ था। वह छद्मवेश में घूमता हुआ एक बुढ़िया के घर में पहुंचा। बुढिया ने उसका आतिथ्य किया और भोजन के लिए खिचड़ी परोसी । छद्मवंशी चाणक्य ने उसके बीच में हाथ डाला। खिचड़ी गर्म थी। हाथ जल गया। बुढ़िया बोली-तू भी चाणक्य जैसा मूर्ख लगता है। “कैसे मां"-छद्मवंशी चाणक्य ने पूछा। बुढ़िया बोली-चाणक्य अपनी छोटी-सी सेना को लेकर सीधा नंदवंश की राजधानी पर आक्रमण करता है । नंद साम्राज्य की विशाल सेना उसे परास्त कर देती है। यह मूर्खता ही तो है। यदि तू किनारे से खिचड़ी खाता तो धीरे-धीरे बीच की भी ठंडी हो जाती । तेरा हाथ नहीं जलता । चाणक्य ने एक बोध-पाठ पढ़ा बुढ़िया से। पहले गांवों और कस्बों को जीता। अपनी शक्ति बढ़ा ली। फिर राजधानी पर आक्रमण किया। नंद साम्राज्य का पतन हो गया। हिंसा का साम्राज्य बहुत बड़ा है। उसकी सेना बहुत विशाल है। हम सीधा हिंसा के गढ़ पर आक्रमण करें तो सफल नहीं हो सकते । पहले जनता के मानस को बदलने का प्रयत्न करें । अहिंसा के प्रति आकर्षण पैदा हो । अहिंसा हमारे जीवन की सफलता और शांति का अनिवार्य अंग है । यह बात बचपन से ही मस्तिष्क में बैठ जाए। इसके लिए हमें अहिंसा विषयक मस्तिष्कीय प्रशिक्षण की पद्धति तैयार करनी होगी। हिंसा के लिए जो रसायन उत्तरदायी हैं, उन्हें बदलने की विधि का विकास करना है । हम केवल वाचिक चर्चा और सिद्धान्त की प्रस्तुति कर हिंसा के साम्राज्य से लोहा नहीं ले.सकते। उससे लिए हमें हृदय-परिवर्तन या ब्रेन-वाशिंग की पद्धति का सहारा लेना होगा। प्रेक्षाध्यान के अभ्यास और प्रयोग के द्वारा उन रसायनों में बदलाव लाया जा सकता है, जो हिंसा के लिए उत्तरदायी हैं। यह रासायनिक परिवर्तन अहिंसा के विकास की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा। अहिंसा और शिक्षा-पद्धति वर्तमान शिक्षा-पद्धति में बौद्धिक विकास पर अत्यधिक भार दिया गया है। आज के महाविद्यालय और विश्वविद्यालय से अच्छे-अच्छे प्राध्यापक, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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