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विश्व-शांति और अहिंसा
चक्र भी नहीं टूटेगा । अमेरिका और रूस शस्त्र-परिशीलन के लिए तैयार होंगे तो कोई तीसरा-चौथा राष्ट्र परमाणु शस्त्रों को बढ़ाने की बात सोचेगा। फिर शक्ति-संतुलन का प्रश्न खड़ा हो जाएगा। शक्ति-संतुलन को बनाए रखने के लिए विकसित राष्ट्रों में फिर शस्त्र-निर्माण की होड़ शुरू हो जाएगी। इस प्रकार जागतिक अशांति और विश्व युद्ध का खतरा हमेशा बना रहेगा।
निःशस्त्रीकरण युद्ध की समस्या का एक समाधान है किन्तु युद्ध की पृष्ठभूमि पर विचार किए बिना यह समाधान पर्याप्त नहीं है। विस्तारवादी मनोवृत्ति, अपनी राजनीतिक प्रणाली और जीवन-प्रणाली को व्यापक बनाने का प्रयत्न, अपने संप्रदाय में पूरे विश्व को दीक्षित करने का प्रयल-यह सब युद्ध की पृष्ठभूमि है। हम लोग यदि विश्व-शांति और युद्ध-वर्जना की बात सोचें तो हमें सबसे पहले पृष्ठभूमि की समस्याओं को सुलझाने की बात सोचनी चाहिए। अहिंसा : एक शाश्वत धर्म
अहिंसा शाश्वत धर्म है। पर हम उसे शाश्वत धर्म के रूप में स्वीकार नहीं कर रहे हैं। जब-जब मानव-समाज पर खतरे के बादल मंडराते हैं तब भयभीत दशा में अहिंसा की बात याद आती है और उसके विकास के लिए हमारा प्रयत्न शुरू होता है। इस प्रकार हमने अहिंसा को संकटकालीन स्थिति से उबरने का उपाय मान लिया है। इसीलिए अहिंसा का स्वतंत्र विकास नहीं हो रहा है। हिंसा निषेधात्मक प्रवृत्ति है। वह विधायक जैसी बनी हुई है। अहिंसा की प्रवृत्ति विधायक है पर वह निषेधात्मक जैसी बनी हुई है । हिंसा का निषेध अहिंसा है-इस शब्द-रचना से एक भ्रान्ति पैदा हो गई है। इस भ्रान्ति ने हिंसा को पहले नंबर में और अहिंसा को दूसरे नंबर में रखने की धारणा बना दी । इस धारणा से अभिभूत आदमी यह मानकर चल रहा है कि हिंसा जीवन के लिए अनिवार्य है, अहिंसा अनिवार्य नहीं है । जिस दिन अहिंसा की अनिवार्यता समझ में आती है, हिंसा का चक्रव्यूह अपने आप टूट जाता है । अहिंसा की समस्या
हिंसा को मनुष्य ने मान्यता दे दी है। इस स्थापना की पुष्टि बहुत सरलता से की जा सकती है । आज संहारक अस्त्रों की खोज के लिए हजारों वैज्ञानिक समर्पित हैं । हजारों-हजारों सैनिक प्रतिदिन युद्ध का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं । अनगिन सैनिक प्रतिदिन युद्ध के अभ्यास में संलग्न हैं । हिंसा के क्षेत्र में अनुसंधान, प्रशिक्षण और प्रयोग-ये तीनों चल रहे हैं । इससे सहज ही यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि हिंसा को जीवन में मान्यता प्राप्त है।
अहिंसा विवशता या बाध्यता की स्थिति में मान्य हो रही है । इसलिए उसके बारे में अनुसंधान, प्रशिक्षण और प्रयोग कहीं नहीं हो रहे हैं।
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