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________________ १६४ अहिंसा : व्यक्ति और समाज किया है कि जब तक इस नैतिक प्रश्न का हल नहीं हो जाता, समस्याएं सुलझने वाली नहीं हैं। मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूं, राष्ट्र का अधिकांश भाग आज मेरी इस आवाज के साथ है। उस प्रयोग का दूसरा पक्ष यह होगा कि पूंजी पर व्यक्तिगत स्वामित्व न रहे । आर्थिक विषमता का मूल पूंजी पर व्यक्तिगत स्वामित्व ही है। जब तक यह बना रहेगा, गरीब और धनवान-ये दो वर्ग बने रहेंगे; जिसका अर्थ होगा, समाजवाद की असफलता । मैं अपनी लंबी पद-यात्राओं के बीच साम्यवाद में आस्था रखने वाले हजारों व्यक्तियों के संपर्क में आया हूँ । उस सम्पर्क में मैंने पाया, उनमें से नब्बे प्रतिशत लोगों की साम्यवाद में आस्था धार्मिक विमुखता के कारण नहीं, आर्थिक विषमता के कारण ही है। धर्म के संस्कार आज भी उनमें हैं। चर्च और मन्दिरों में आज भी उनके दिलों में श्रद्धा है। फिर भी वे अपने को साम्यवादी मानते हैं और इसके पीछे एकमात्र कारण देश की आर्थिक विषमता ही है। यदि आज यह आर्थिक विषमता मिट जाती है, तो हिंसात्मक आन्दोलन स्वयं अपनी मौत मर जाते हैं। वर्तमान परिस्थितियों में पूंजी पर से व्यक्तिगत स्वामित्व हटने से ही यह संभव है। संत विनोबा ने भूदान का जो प्रयोग किया, उसके पीछे विषमता मिटाने का लक्ष्य रहा हो, ऐसा मैं नहीं सोचता । जिनके पास बिलकुल जमीन नहीं थी, उनमें से कुछ को इस प्रयोग से कुछ राहत मिली, यह हो सकता है, किन्तु यह राहत ही है, स्थिति का समाधान नहीं । जिसके पास पांच सौ बीघा जमीन हो, वह पांच बीघा जमीन भूदान में दे दे-~-इससे विषमता का अन्त नहीं होता, प्रत्युत उस ४६५ बीघा जमीन की उम्र और अधिक लम्बी ही जाती है। जिस किसान के मन में सर्वथा अभाव के कारण रोष होता है, वह 'कुछ' भाव के कारण उतना तीव्र नहीं रह पाता। फिर इसने देश की आर्थिक व्यवस्था में जटिलता ही पैदा की है। इसलिए भूदान के प्रयोग को आर्थिक विषमता मिटाने की दिशा का प्रयोग कहने में मुझे कठिनाई महसूस हो रही है। ___ अणुव्रत ने इस दिशा में इस रूप से कोई प्रयोग करने का कोई निर्णय नहीं लिया है। विचार-क्रांति की दृष्टि से उसने देश में अवश्य वातावरण का निर्माण किया है। प्रयोग की दृष्टि से भी उसे निर्णय लेना है। इससे पूर्व वह इस विषमता को मिटाने वाले हर अहिंसात्मक प्रयास का पूरा समर्थन करता प्रजातंत्र का प्रासाद जनता के विश्वास और सद्भावना पर ही टिका होता है । जिस दिन वह विश्वास और सद्भावना टूट जाए, मान लेना चाहिए कि वह प्रजातंत्र भी अधिक निभने वाला नहीं है। अब देश के भविष्य में दो संभावनाएं ही शेष हैं-कोई दल-विशेष अपना विश्वास उत्पन्न कर शासन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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