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________________ समाज रचना के आधार चेतना का सम्बन्ध ज्ञान से है। ज्ञान का आधार है विचार और भावना | बलवती भावना, इच्छा या जागृत विवेक से जो काम होता है, वह मनुष्य की स्वतंत्र चेतना की प्रेरणा है । सामान्यतः इच्छा के विना कोई काम नहीं होता पर उस इच्छा की प्रेरक शक्ति इच्छा भी हो सकती है और व्यवस्था का दबाव भी । व्यवस्था के दबाव से काम होता है, बुराइयां मिटती हैं और मनुष्य नये सांचे में भी ढलता है । क्योंकि किसी सीमा तक व्यवस्था उसके द्वारा स्वीकृत होती है । समाज शास्त्रियों का अभिमत है कि व्यवस्थाओं के दबाव बिना कोई समाज चल ही नहीं सकता । शत-प्रतिशत सफल ही में बुराइयों के करता रहता है । समाज के लिए व्यवस्थाएं आवश्यक हैं पर वे होती हैं, ऐसी बात नहीं है । क्योंकि जब तक मनुष्य के प्रति घृणा नहीं होती तब तक वह प्रकारान्तर से बुराइयां समाज का भय और संकोच उसके मन में झिझक पैदा करता रहता है, किन्तु वह झिझक प्रत्यक्ष रूप से बुराई करने तक सीमित रहती है । परोक्ष में संकोच मिट जाता है, भय का प्रभाव भी क्षीण हो जाता है । प्रकट रूप में व्यवस्था की दुहाई देना और परोक्ष में उसे तोड़ देना व्यवस्था के साथ आंख-मिचौनी करना है । परोक्ष रूप से बुरे कार्य में प्रवृत्त होने वाला व्यक्ति अपनी बुराई पर आवरण डालने के लिए दूसरे लोगों को भी भ्रष्ट करता है । भ्रष्टाचार एक संक्रामक रोग है । इसके संक्रमण से ही समाज में नयी-नयी बुराइयां पैदा हो रही हैं । Jain Education International आज का शासन-तन्त्र इसका स्पष्ट उदाहरण है । एक व्यक्ति व्यवस्था का उल्लंघन करता है, वह अधिकारियों को रिश्वत देकर अपने साथ कर लेता है । कुछ अधिकारी मानवीय दुर्बलता से अभिभूत हो पैसे का प्रलोभन छोड़ नहीं सकते इसलिए उसे निषिद्ध वस्तुओं के व्यापार की अनुमति मिल जाती है, अवैध लाइसेंस प्राप्त हो जाता है और उसके लिए बुराइयों का द्वार खुल जाता है । इससे व्यक्ति की मानसिक शक्ति क्षीण होती है और वह बुराइयों से लड़ने की क्षमता खो बैठता है । परोक्ष में पनपने वाले दोषों से बचाव करने के लिए अहिंसा की पृष्ठभूमि पर चिंतन हुआ । अहिंसा के क्षेत्र में दबाव का स्थान स्वतंत्र चेतना को मिला | स्वतंत्र चेतना को प्रहरी बनाकर कार्यक्षेत्र में उतारा जाए तो न मानसिक दुर्बलता आती है और न समाज में दोष पनपते हैं । इस क्रम से मन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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