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________________ युद्ध और अहिंसक प्रतिकार युद्ध एक चिरकालीन समस्या है। कुछ लोग समस्या का समाधान पाने के लिए युद्ध करते रहे हैं और कुछ लोग युद्ध की समस्या का प्रतिकार करने के लिए सोचते रहे हैं। कुछ लोगों को दृष्टि में शक्ति सन्तुलन ही युद्ध का प्रतिकार है और कुछ लोगों की दृष्टि में उसका प्रतिकार है अहिंसा । शक्तिसन्तुलनवादी अस्त्र-शस्त्रों में विश्वास करते हैं, इसका अर्थ है, वे युद्ध में विश्वास करते हैं। अहिंसावादी निःशस्त्रीकरण में विश्वास करते हैं, इसका अर्थ है वे युद्ध में विश्वास नहीं करते । सब अहिंसाबादी हों तो युद्ध शब्द का अस्तित्व ही न रहे, पर सब लोग वैसे नहीं हैं। जिनमें साम्राज्य-विस्तार का रस है, भय और संदेह है, जो भौतिकता में सर्वोपरि आस्था रखते हैं, वे युद्ध का अस्तित्व चाहते हैं। उन्होंने युद्ध को भयंकर समस्या के रूप में देखा है, जिनकी आन्तरिक आस्था प्रबल है । वे युद्ध नहीं चाहते, फिर भी उन्हें यह उपाय नहीं मिला है, जिससे युद्ध का अस्तित्व मिट जाय । पदार्थवाद की दृष्टि से मानव बहुत विकास कर चुका है पर अहिंसावाद की दृष्टि से वह अभी बहुत कम विकसित हैं। जिस दिन सम्पूर्ण मनुष्य जाति युद्ध, अपहरण, शोषण आदि को दास-प्रथा की भांति अमानवीय कर्म मानने लगेगी, उस दिन उसका विकास एक निश्चित रेखा पर होगा। अभी इस स्थिति तक पहुंचने में अनेक शताब्दियों और प्रचुर प्रयत्नों की आवश्यकता है। दास-प्रथा के विरोध में जो आवाज उठी थी, वह हजारों वर्षों के बाद पूर्णतः क्रियान्वित हुई । वैसे ही युद्ध के विरोध में जो प्रबल स्वर उठेगा, वह एक दिन अवश्य ही सफल होगा। हम निराश न हों, युद्ध के विरोध में प्रबल आवाज उठायें और उठाते रहें। युद्ध का प्रतिकार कैसे ? आज हमारा तत्काल चिन्तनीय विषय है-युद्ध का प्रतिकार कैसे हो? हिंसा से हो या अहिंसा से ? शस्त्र से हो या अशस्त्र से ? चीन ने हिन्दुस्तान पर आक्रमण किया तब सारे देश में हिंसक-प्रतिकार एवं सशस्त्र प्रतिरोध का स्वर प्रबल हो उठा । यह आश्चर्य की बात नहीं है । हिंसक-प्रतिकार चिरकाल से परिचित है। उसमें मनुष्य की प्रबल आस्था है। अहिंसक-प्रतिकार से वह पूर्णत: परिचित नहीं है । युद्ध के अहिंसक-प्रतिकार का चिन्तन प्राचीन साहित्य में विशेष उपलब्ध भी नहीं है । भगवान् महावीर के श्रावक अनाक्रमण का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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