________________
सामुदायिक जीवन और सहिष्णुता
१०७ सम्यक् बनाना जरूरी है। एक शिकारी शिकार करने गया। दृष्टि कमजोर थी। सामने शिकार को देख गोली चलाई। अपने सहायक से पूछा-गोली किस जानवर पर लगी। सहायक बोला--महाशय! एक पेड़ पर लगी है । दृष्टिकोण सही नहीं है तो जानवर और पेड़ में कोई फर्क नहीं रहता।।
सहिष्णुता का पहला सूत्र बनता है-सम्यग् दृष्टिकोण। दूसरा सूत्र बनता है--सहासिका-एक साथ बैठना । समस्या को सुलझाने के लिए एक मंच पर एक साथ बैठना आवश्यक होता है। तीसरा सूत्र है-एक दूसरे को समझने का प्रयत्न । समझ की दूरी व्यक्तियों में दूरी पैदा कर देती है। पारस्परिक समझ दूरी मिटा देती है । व्यवस्था भंग करने वाले की सहिष्णुता टूट जाती है । वह दूसरों की सहिष्णुता में भी बाधा पहुंचाता है। विश्वशांति का दर्शन : सहिष्णुता
सहिष्णुता मानसिक शांति का दर्शन है। यही विश्वशांति का दर्शन है। व्यक्ति अशान्त है तो विश्वशान्ति नहीं हो सकती। मन अशान्त है तो विश्वशान्ति नहीं हो सकती । सहिष्णुता की पहली भूमिका है-परिस्थितियों को झेलना। दूसरी भूमिका है-दूसरे व्यक्ति को सहन करना। तीसरी भूमिका है-अपने से भिन्न विचारों को सहन करना। चौथी भूमिका है-राग और द्वेष की तंरगों का सामना करना, उनसे पराजित न होना। यह मार्ग राग से वीतरागता की ओर जाने का मार्ग है। जो व्यक्ति जितना वीतराग, उतना अनेकान्ती। जो व्यक्ति जितना वीतराग, उतना अहिंसक । जो व्यक्ति जितना वीतराग, उतना सहिष्णु । अनेकान्त, अहिंसा और सहिष्णुता को कभी बांटा नहीं जा सकता।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org