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________________ अहिंसा के अछूते पहलु मैं अर्थ का प्रदर्शन नहीं करूंगा, इसका नाम है धर्म। अर्थ की सीमा करना, अर्थ का त्याग करना, इसका नाम है धर्म । इच्छा का परिमाण करना, अर्थ का परिमाण करना, हिंसा का परिमाण करना, सीमा करना, इसका नाम है धर्म। दूसरा है कामना का सीमाकरण । कामनाएं बहुत जागती हैं । कामना को सीमित कर देना। जो भी कामना आएगी, मैं उसे क्रियान्वित नहीं करूंगा । कामनाएं बहुत जागती हैं—यह करूं, वह करूं, यह हो जाए, वह हो जाए । कामना में तो आदमी बह जाता है। उनका सीमाकरण कर देना। इससे अधिक जो कामना आएगी उसे क्रियान्वित नहीं करूंगा, यह है धर्म । कामना का सीमाकरण और अर्थ का सीमाकरण-इसका मतलब है धर्म । धर्म की बिलकुल सीधी परिभाषा है। बहुत कठिन है त्यागना ___ संप्रदाय ने धर्म को बहुत उलझा दिया। यह बहुत सीधी भाषा हैजितना त्याग मको, जितना पदार्थ-निरपेक्ष रह सको उतना धर्म है। बाकी अधर्म है, तुम्हारी लौकिकता है। पदार्थ का भोग करना, यह लौकिक बात है और पदार्थ का त्याग करना, यह अलोकिक बात है। धर्म हमारी वह चेतना है जिसमें पदार्थ को त्यागने की क्षमता जाग सके। बड़ी कठिन बात है पदार्थ को त्यागने की । भोगने की बात तो हर आदमी में जाग आती है। एक छोटा बच्चा था। पास में मां बैठी थी। बच्चा रो रहा था। मां ने पांच रुपए का नोट दिखाया और बच्चे को दे दिया। बच्चे ने रोना बंद कर दिया। पांच-सात मिनट बाद मां ने बच्चे से कहा कि लाओ, दे दो, कहीं गुम हो जाएगा। बच्चे ने मुट्ठी बन्द करली। मां ने जी तोड़ प्रयत्न कर लिया, पर मुट्ठी नहीं खुली । वह वापस नहीं देना चाहता था। छोटा बच्चा भी रुपये के लिए मुट्ठी बंद करना जानता है, खोलना नहीं जानता । बड़ों की तो बात ही क्या है ? ऐसा लगता है कि भोग हमारी कोई मौलिक मनोवृत्ति है और वह हमारी चेतना में समाया हुआ है । भोग का बहुत गहरा संस्कार बन गया। किन्तु त्याग का हमारा संस्कार नहीं है । यदि त्याग की चेतना जाग जाए तो मैं अलौकिक बात मानता हूं और यह अलौकिक चेतना ही धर्म है । त्याग की चेतना का जाग जाना ही धर्म है। मोक्ष का नया अर्थ चौथा पुरुषार्थ है-मोक्ष । कौनसा मोक्ष ? क्या मरने के बाद मिलने वाला मोक्ष ? हमने मान रखा है आदमी मरने के बाद ही स्वर्ग में जाएगा, मरने के बाद ही नरक में जाएगा, मरेगा तब मोक्ष में जाएगा। धर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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