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नये जीवन का निर्माण
तीसरा सूत्र है-धर्म और मोक्ष के प्रति सम्यक दर्शन जागे । धर्म के प्रति भी हमारा दृष्टिकोण सम्यक् होना चाहिए और मोक्ष के प्रति भी हमारा दृष्टिकोण सम्यक् होना चाहिये।
___आज कुछ ऐसा लगता है, अर्थ का प्रभाव धर्म को छू गया । अर्थ वाले जो लोग हैं वे धर्म भी अर्थ के द्वारा ही करना चाहते हैं। बहुत कमाया और थोड़ा सा दान-पुण्य कर दिया और स्वर्ग के लिए सीट रिजर्व हो गई। चाहे जैसे-तैसे कमाये, बुरे साधनों से कमाये, दूसरे का गला काटकर कमाये पर थोड़ा सा दानकर समझते हैं बस, सब कुछ हो गया । कभी-कभी उनसे कहा जाता है-तुम गलत ढंग से कमाते हो और थोड़ा सा दान देकर अपने आपको धार्मिक मान लेते हो। तब उनका उत्तर होता है---कोरे कमाते ही नहीं हैं, देते भी हैं। वे देने में अटक आते हैं। देने को धर्म मान लिया जाता है। भ्रान्त अवधारणा
____ आचार्य भिक्षु ने इस बात पर बहुत गहराई से चिंतन किया। उन्होंने कहा-धन से धर्म नहीं होता। यह जो माना जाता है कि धन खर्च करो, धर्म हो जाएगा, यह उतना ही गलत है जितना कि मिट्टी खाओ और प्यास बुझ जाएगी। कोई सम्बन्ध ही नहीं है । धर्म केवल आत्मा की शुद्धि है, विचारों और भावों की शुद्धि है। अपनी आंतरिक पवित्रता है। धर्म का धन से कोई संबंध नहीं है। अगर धन से धर्म खरीदा जायेगा तो धनवान लोग स्वर्ग में ही जाएंगे। गरीबों के लिए नरक तैयार है। वे वहीं जाएंगे। यह एक गलत दृष्टिकोण स्वीकृत हो गया। आज अनैतिकता को पोषण देने में यह सिद्धांत भी काम कर रहा है । धनी सोचते हैं, अगर हम बुराई से कमाते हैं तो धर्मशाला भी तो हम बनाते हैं, प्याऊ भी बनाते हैं और हास्पिटल भी बनाते हैं। आखिर करता कौन है ? एक गलत दृष्टिकोण बन गया कि जैसेतैसे गलत साधनों से कमाओ और थोड़ा-सा दान देकर यह मान लो कि सिद्धि हो गई और नरक टल गया, स्वर्ग तैयार है। धर्म के साथ जहां त्याग और तपस्या का दृष्टिकोण जुड़ा हुआ था, वह गौण हो गया, दान और पुण्य का दृष्टिकोण मुख्य बन गया। यह एक भ्रान्ति बन गई। अर्थ और काम का समीकरण
धर्म क्या है ? धर्म का सम्यक् दर्शन क्या है ? आचार्य भिक्षु ने धर्म की एक छोटी सी परिभाषा दी- त्याग धर्म और भोग अधर्म । जितनाजितना त्याग उतना-उतना धर्म और जितना-जितना भोग उतना-उतना अधर्म । धर्म का मतलब है-अर्थ और काम का समीकरण । अर्थ और काम की सीमा करना। इतने से ज्यादा अर्थ का उपयोग मैं नहीं करूंगा। इसका नाम है. धर्म । मैं गलत तरीके से अर्थ का अर्जन नहीं करूंगा, इसका नाम है धर्म ।
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